Saturday, June 20, 2015

जान जाती है जब उठ के जाते हो तुम..

' जान जाती है जब उठ के जाते हो तुम '
फरीदा आपा , कहाँ से लाई हो तुम आवाज़ में ऐसी तड़प कि जाने वाले के कदम वहीं के वहीं थम के रह जाएँ !उफ़ सी होती है दिल में , धड़कनें मुंह को आती हैं ! रोकने वाले की जान जाने वाले के क़दमों में घिसटती हुई पीछे पीछे जाती है !
मैंने तो जब जब कहा ' तुमको अपनी कसम जानेजां ,बात इतनी मेरी मान लो ' जाने वाला मुस्कुराया,गाल पर एक मीठी चपत लगाई और फिर कभी नहीं लौटा ! कसम सिसकती हुई खुली खिड़की पर औंधे मुंह पड़ी रही ! जान निकलती रही ,जान जाती रही पर कोई रुका नहीं !
जाने कितनी कही अनकही इश्क की दास्तानों में ये एक गुज़ारिश रो रोकर दम तोड़ती रही ! पहलू से उठकर जाते देखना रुलाता रहा ,हाय मरते रहे, लुटते रहे मगर आखिर में पनाह देती बस एक आवाज़ बची रह जाती !
' आज जाने की ज़िद न करो '
फरीदा आपा .. तुम गाती जातीं , रील घिसती जाती , ज़िन्दगी गुज़रती जाती !
आखिरी बार तुम्हे अपनी रूह में घोलकर मैंने शिद्दत से बार बार पुकारा था....
' तुम ही सोचो भला क्यूँ न रोकें तुम्हे ,जान जाती है जब उठ के जाते हो तुम
तुमको अपनी कसम जानेजां ,बात इतनी मेरी मान लो
आज जाने की ज़िद न करो '
पर पापा नहीं रुके ! तुमको इतना इतना सुनने वाले पापा नहीं रुके ! ऐसे गए कि बस ...
सच सच कहना आपा ,क्या तुम भी कभी रोक पायीं जाने वालों को ? नहीं रोक पायी होगी ना .. जाने वाला कब रुका है भला ?
आज किसी को नहीं रोकना मुझे ! किसी से कोई ज़िद नहीं करनी ! मगर तुमसे एक रिश्ता है आपा ! जब भी जाने वाले को रोकूँगी ,तुम्हे ही गुनगुनाउंगी । क्या जाने कोई सचमुच ही सारा जहां छोड़कर पहलू में ही बैठा रह जाए ! कोई एक कसम पर ख़ुशी ख़ुशी बंध जाए !
आपा ... तुम पनाह देती हो हमेशा हमेशा ! अभी भी तुम्हारी आवाज़ के दरिया में गहरे डूबी हुई हूँ ! तुम्हारे इतने कहे पर ही जान निकलती है मेरी !
' वक्त की कैद में ज़िन्दगी है मगर ,चन्द घड़ियाँ यही हैं जो आज़ाद है
इनको खोकर मेरी जानेजां ,उम्र भर न तरसते रहो
आज जाने की ज़िद न करो .... '