Saturday, April 28, 2012

एक लड़की और सूरज की दोस्ती की कहानी.


वो सुबह बिस्तर से कूदकर उठती ...सूरज की अगवानी करने के लिए! उसे पसंद नहीं था कि उसके उठने के पहले एक तोला सोना भी धरती पर बिखरे! बचपन में एक बार पापा ने बड़े प्यार से उसे बिस्तर से उठाया था और अपने गोद में बाहर बागीचे में ले गए थे...आँखे उसकी बंद करके! " ..." जब मैं कहू तब आँख खोलना " पापा ने कहा था! ठीक पांच मिनिट बाद उसने आँखें खोली थीं और बस  पूरब से उतरती किरनों के जादू में गिरफ्तार होकर रह गयी थी! तब से आज तक  सूरज ने हमेशा उसका इंतज़ार किया है! काला घुप्प आसमान देखते ही देखते कैसे लाल, ऑरेंज और फिर सुनहरे रंग की चूनर तान लेता है! जैसे काले दुपट्टे को किसी रंगरेज ने रंग कर आसमान में उड़ा दिया हो! और बादलों के बीच से जब सुनहरी रेखा झांककर देखती फिर उसके घर की छत पर जैसे ही उतरती  , वो ऊपर की तरफ चेहरा करके खड़ी हो जाती  और धूप का एक टुकड़ा उसका चेहरा चूम लेता ! शाम को भी वह स्कूल से आते ही भागकर छत पर जाती ..वहां मुंडेर पर धूप बैठी उसका इंतज़ार करती मिलती! थोडा सा सोना उसके मुंह पर मलकर सूरज विदा लेता! "विदा मेरे सबसे अच्छे दोस्त..." वो खुशी से भरकर चिल्लाती...

                           एक दिन  उसने अपने बचपन के दोस्त को एक राज  बताया था ... " उसका नाम भी सूरज है...और बताते बताते शरमा कर रह गयी थी " अब उसकी जिंदगी में एक और सूरज शामिल हो गया था! कई बार वो बावली सी सुबह सुबह दौडी जाती और सूरज को उठाकर बाहर बालकनी में खड़ा कर देती...फिर दोनों सूरजों को बारी बारी देखती...! ऊपर वाला सूरज मुस्कुरा देता और बालकनी वाला निरीह सा चेहरा बनाकर दोबारा सोने की इजाज़त मांगता! वो ऊपर देखकर चिल्लाती.. "मेरा वाला तुमसे अच्छा है!"

                                       वो बहुत खुश थी... सूरज के चेहरे पर भी उसे वैसा ही तेज और ताप महसूस होता जो वो बचपन से महसूस करती आई थी!क वो उसे खत लिखती... उसके लिए हाथ से रूमाल काढती , उसे प्यार करती तो बस करती ही जाती! उसकी देह की गंध अपने सीने से चिपकाए सोती और सुबह किरनों का हार पहनकर उस गंध को सुनहरा बना देती! ए दिन सुबह छत पर एक किरन  उतरी और उसने उसे कहा " सूरज के अंदर बहुत आग है...नज़दीकी बढ़ाओगी तो झुलस जाओगी.." उसने गुस्से में किरन को मोड दिया और रूठकर चल दी! 
                                          कई दिन बीते...किरनों से उसकी सुलह हो गयी थी! एक दिन एक खत आया... सूरज जा चूका था! हमेशा के लिए! वह रोई..बिलखी! इतने आंसू झरे कि किरने भी भीग कर अपने रंग खो बैठीं! सूरज पूरब से पश्चिम तक जाते जाते उसके उदास मुख पर चमक लाने की कोशिश करता! पर वो चमक वापस नहीं आई! उसने सूरज का खत जला दिया और साथ में उंगलियां भी जला बैठी ! उँगलियों पर मलहम लगाये वह सोच रही थी.... क्या सचमुच सूरज  नज़दीक आने पर झुलसा देता है?"

                                                           कई साल बीत गए इस घटना को... अब भी वो सुबह उठकर सूरज को उगता देखती है! पर जैसे ही किरनें उसका मुख चूमने की कोशिश करती हैं..वह सहमकर पीछे हट जाती है! फिर खिडकी के पीछे से छुपकर सूरज को धरती के नज़दीक आता देखती है! फिर बुदबुदाती है.. " तुम भी मेरे नज़दीक आकर मुझे झुलसा दोगे न ? सूरज अपना आंसुओं से भीगा मुंह फेरकर अस्त होने लगता है और वो किरन जिसने लड़की को आगाह किया था..अपने किये पर पछताती है! इस हिले हुए भरोसे को अब वो कहाँ से वापस लाये..? उसके साथ पूरा आसमान खुदा से फ़रियाद करता है कि लड़की के जीवन को फिर से प्यार और विश्वास से महका दो... लड़की सुनती है और डबडबाई आँखों के साथ खिडकी बंद कर देती है!