Monday, November 5, 2012

"कोई"...( इंतज़ार, पतझर और इश्क)

वो पतझर के मौसम का बेसब्री से इंतज़ार करने वाली एक अजीब किस्म की लड़की थी! ऐसे मौसम में जब चारों ओर पीले पीले पत्ते हवा में उड़ते हुए ज़मीन पर आ गिरते , वह किसी गुलमोहर के नीचे किसी बेंच पर बैठ जाती और निचला होंठ दांतों से दबाये पत्तों का शोर सुनती रहती! उसे इस सन्नाटे भरे शोर में कुछ बोझिल आवाजें सुनाई देतीं! जैसे पत्ते अपनी शाखों से विदा लेते हुए धीमे धीमे सिसकियाँ ले रहे हों! उसे पूरा पतझर विदाई का मौसम महसूस होता था! ऐसे में उसे "कोई "बहुत याद आता! 

उसके कानों में पिछला वक्त रेंगता हुआ पूरे शरीर में दौड़ने लगता! वह अपनी रगों में "कोई " को महसूस करती हुई बर्फ की तरह जम जाती! आँखों में सर्द और जमे आंसुओं की किरचें चुभतीं! जब अँधेरा घिरने लगता तो वह किसी एक टूटे पत्ते को उठाकर घर ले आती! उसे लगता मानो अपने दरख़्त से अभी अभी जुदा हुए पत्ते को किसी के साथ की ज़रुरत है! 

वह खामोश रातों में अक्सर एक आवाज़ सुनकर उठ जाती... अपने सीने के बायीं ओर हाथ रखने पर उसे अपनी धड़कन की लय के साथ एक और धड़कन सुनाई पड़ती! वह समझ जाती , ये " कोई" धड़क रहा है! वह मुट्ठी में अपने दिल को भर लेती... " कोई" कहीं नहीं था! मगर " कोई " हर जगह था! कभी उसके होने के एहसास से भरकर ख़ुशी के मारे नाच उठती, कभी दूर तक उसकी आहट न पाकर उदासी में घिर जाती!

उसके गले में रुलाई की तरह "कोई" अटका हुआ था! रुंधे गले से बरसों बिता देना कोई आसान काम न था! आँखों से आंसू गिराना कठिन नहीं है ..कठिन है उन्हें गले में जमा करते जाना! "कोई" ... जिसे उसने बाहर कर देना चाहा था अपने मन से..और उसका ख्याल था कि मन की गुफाओं में लगे जाले देह के रास्ते बाहर फेंके जा सकते हैं! इसी कोशिश में वो आत्मा के गहरे एकांत से बाहर निकला और गले में अटक कर रह गया ! 
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ेध्यान से देखने पर उसकी गर्दन का रंग गुलाबी दिखाई देता ! वो याद करती... एक बार उसने कहा था कि इश्क का रंग हल्का गुलाबी होता है, हरी कली के अन्दर से जन्मते नन्हे गुलाब की तरह और उदासी का पीला! ठीक वैसा, जैसी रौशनी कोहरे भरी सुनसान रातों में सड़क के किनारे लगे लैम्प पोस्ट बिखेरते हैं! ध्यान से देखने पर उसकी आँखें ऐसी ही पीली तो दिखाई पड़ती ! वो आईने में बार बार अपनी गर्दन और आँखों के रंग को देखा करती ! 
!अपनी गर्दन को सहलाते हुए उसकी उंगलियाँ ठीक वैसा ही सुकून महसूस करतीं जैसा "कोई " की उँगलियों में फंसे हुए वे महसूस करा करती थीं!
वो सुबह मीरा को गुनगुनाती... दोपहर को बुल्लेशाह को पढ़ा करती , रात को अक्सर बूढ़े अमलतास से उस चिड़िया की कहानी सुना करती जिसने  अपने  खून  से सफ़ेद  गुलाब  को लाल सुर्ख रंग दिया था! ! उसका रोम रोम इश्क की दरगाह बन गया था जहां लैला और हीर भी आकर सजदे किया करती थीं!

सदियाँ बीत गयीं... वो इन्ही दो रंगों में जीती रही , इंतज़ार करती हुई  !... ना "कोई" आया , ना "कोई" निकला ! अब उसकी  गर्दन गहरी गुलाबी दिखाई देने लगी थी और आँखें..  जैसे आंसुओं में किसी  ने हल्दी घोल दी हो!
एक दिन  पतझर के मौसम में अचानक तब्दीली आई! अचानक पत्तों का टूटना और गिरना बंद हो गया! हवा सुहानी हो गयी! उसने हैरत से नज़रें उठाईं.... वो आँखें मलकर बार  बार देखती ! उसकी आँखों के सामने " कोई " खड़ा  था! उसने उस दिन एक और गुलाबी गर्दन और पीली आँखें देखीं....!

! उसके इंतज़ार का पतझर बीत चुका था और इश्क के दरख़्त पर कई रंगों वाले फूल खिल आये थे! दो पल बाद वो "कोई" की बाहों में थी! आसमान की आँखें भर आयीं और सामने पहाड़ की चोटी पर बरसों से जमी सफेदी पिघलकर बह निकली!वक्त गुज़रना भूलकर इस मिलन का गवाह बन गया था !
अब दोनों का बदन गुलाबी रंग का दिखाई देता था! और उनके क़दमों के नीचे से पीली नदी बह निकली थी!

Saturday, August 11, 2012

सुर


मैं तुम्हारे साथ सुरों से बंधी हुई हूँ! न जाने कौन से प्रहर में कौन सा कोमल सुर आकर हौले से मेरे तार तुमसे बाँध गया! शायद उस दिन जब तुम भैरव के आलाप के साथ सूरज को जगा रहे थे तभी रिषभ आकर मेरे दुपट्टे के सितारों में उलझ गया होगा या फिर उस दिन जब मैं सांझ की बेला में घंटियाँ टनटनाती धूल के बादल उड़ाती गायों को यमन की पकड़ समझा रही थी तब शायद निषाद आवारागर्दी करता हुआ तुम्हारे काँधे पर जाकर झूल गय
ा होगा!

तुमने एक बार कहा था कि " आसमान से सुर बरसते हैं... बस उसे सुनने के लिए चेहरे पर नहीं दिल में कान होना चाहिए " फिर जिस दिन तुमने रात को छत की मुंडेर पर बागेश्री के सुरों को हौले से उड़ा रहे थे तब मेरे दिल में भी कान उग आये थे! और दो आँखें भी जिनसे मैंने पूरी श्रष्टि के कोने कोने से सुरों को बहकर तुम्हारे पास आकर पालथी लगाकर बैठते देखा था!

और तुम्हे याद है वो रात जब आखिरी पहर चाँद ने हमसे सोहनी की फरमाइश की थी और बादलों पर ठुड्डी टिकाये चांद तक हमने एक तराना पहुँचाया था ..तब तुम्हारे साथ मींड लेते हुए मैंने मेरी आत्मा को तुम्हारी आत्मा में घुलते देखा था! मेरी आँख की कोर से निकले आंसू को गंधार ने संभाला था और एक सुर भीगकर हवा में गुम हो गया था!

सुरों की माला हमने एक दूसरे के गले में पहनायी है! षडज से निषाद तक हमारी साँसें एक लय में गुंथी हुई चल रही हैं! मुझे नहीं जाना है ताजमहल, न ही देखना है इजिप्ट के पिरामिड कि मैंने तुम्हारे साथ विश्व के सात आश्चर्यों की यात्रा कर ली है!

Saturday, July 14, 2012

रे तुम "मैं" ही तो हो .



तुम अपना असली पता जानना चाहते हो न ? अपने होने की वजह जानना चाहते हो न? 

क्या तुमने एकांत में अपनी आत्मा से संवाद किया है? किसी दिन अपनी आत्मा को हथेलियों में भरकर प्यार से उससे पूछो ..देखो कि ये तुम्हे तुम्हारा क्या ठिकाना बताती है?

क्या तुमने अपने आसपास पसरे मौन को सुनने की कोशिश की है कभी ? तुम्हे जानकर हैरत होगी कि इस मौन को सुनने के लिए ईश्वर ने हमें एक जोड़ी कान और दिए हैं जिनका इस्तेमाल कई बार हम जीवन भर नहीं कर पाते! कभी भीड़ में जाओ और तब उस मौन को सुनो... क्या कहता है ये? क्या ये तुम्हे तुम्हारे साथ साथ एक और दिल की धडकन सुनाता है?

क्या तुमने कभी आँखें मूंदकर चलने की कोशिश की है? कभी अपने बदन को ढीला छोड़कर बंद आँखों से चलकर देखो! मन की आँखें राहों को ज्यादा अच्छी तरह पहचानती हैं!देखो कि तुम्हारे कदम तुम्हे कहाँ पहुंचाते हैं ! क्या ये वही जगह नहीं है जहां पहुँचने का आदेश ईश्वर से लेकर तुम आये थे?

पता है तुम्हे...कई बार सिर्फ इतनी सी बात जानने के लिए हज़ार जनम लेने पड़ते हैं! जितना मैंने बताया तुम उतना करके देखो..मेरा विश्वास है तुम अनुत्तरित नहीं रहोगे! तुम जान लोगे कि तुम कहाँ रहते हो!

तुम्हे अपने होने पर कभी यकीन नहीं आया ! क्या इतना भी नहीं समझते कि मेरा होना ही तो तुम्हारा होना है

अगर इतने पर भी तुम इस भेद को न बूझ सको तो क्या इतना संकेत काफी होगा ...


कि " जब भी मैं अपनी देह को खुरचती हूँ, तुम झड़ते हो "

Saturday, April 28, 2012

एक लड़की और सूरज की दोस्ती की कहानी.


वो सुबह बिस्तर से कूदकर उठती ...सूरज की अगवानी करने के लिए! उसे पसंद नहीं था कि उसके उठने के पहले एक तोला सोना भी धरती पर बिखरे! बचपन में एक बार पापा ने बड़े प्यार से उसे बिस्तर से उठाया था और अपने गोद में बाहर बागीचे में ले गए थे...आँखे उसकी बंद करके! " ..." जब मैं कहू तब आँख खोलना " पापा ने कहा था! ठीक पांच मिनिट बाद उसने आँखें खोली थीं और बस  पूरब से उतरती किरनों के जादू में गिरफ्तार होकर रह गयी थी! तब से आज तक  सूरज ने हमेशा उसका इंतज़ार किया है! काला घुप्प आसमान देखते ही देखते कैसे लाल, ऑरेंज और फिर सुनहरे रंग की चूनर तान लेता है! जैसे काले दुपट्टे को किसी रंगरेज ने रंग कर आसमान में उड़ा दिया हो! और बादलों के बीच से जब सुनहरी रेखा झांककर देखती फिर उसके घर की छत पर जैसे ही उतरती  , वो ऊपर की तरफ चेहरा करके खड़ी हो जाती  और धूप का एक टुकड़ा उसका चेहरा चूम लेता ! शाम को भी वह स्कूल से आते ही भागकर छत पर जाती ..वहां मुंडेर पर धूप बैठी उसका इंतज़ार करती मिलती! थोडा सा सोना उसके मुंह पर मलकर सूरज विदा लेता! "विदा मेरे सबसे अच्छे दोस्त..." वो खुशी से भरकर चिल्लाती...

                           एक दिन  उसने अपने बचपन के दोस्त को एक राज  बताया था ... " उसका नाम भी सूरज है...और बताते बताते शरमा कर रह गयी थी " अब उसकी जिंदगी में एक और सूरज शामिल हो गया था! कई बार वो बावली सी सुबह सुबह दौडी जाती और सूरज को उठाकर बाहर बालकनी में खड़ा कर देती...फिर दोनों सूरजों को बारी बारी देखती...! ऊपर वाला सूरज मुस्कुरा देता और बालकनी वाला निरीह सा चेहरा बनाकर दोबारा सोने की इजाज़त मांगता! वो ऊपर देखकर चिल्लाती.. "मेरा वाला तुमसे अच्छा है!"

                                       वो बहुत खुश थी... सूरज के चेहरे पर भी उसे वैसा ही तेज और ताप महसूस होता जो वो बचपन से महसूस करती आई थी!क वो उसे खत लिखती... उसके लिए हाथ से रूमाल काढती , उसे प्यार करती तो बस करती ही जाती! उसकी देह की गंध अपने सीने से चिपकाए सोती और सुबह किरनों का हार पहनकर उस गंध को सुनहरा बना देती! ए दिन सुबह छत पर एक किरन  उतरी और उसने उसे कहा " सूरज के अंदर बहुत आग है...नज़दीकी बढ़ाओगी तो झुलस जाओगी.." उसने गुस्से में किरन को मोड दिया और रूठकर चल दी! 
                                          कई दिन बीते...किरनों से उसकी सुलह हो गयी थी! एक दिन एक खत आया... सूरज जा चूका था! हमेशा के लिए! वह रोई..बिलखी! इतने आंसू झरे कि किरने भी भीग कर अपने रंग खो बैठीं! सूरज पूरब से पश्चिम तक जाते जाते उसके उदास मुख पर चमक लाने की कोशिश करता! पर वो चमक वापस नहीं आई! उसने सूरज का खत जला दिया और साथ में उंगलियां भी जला बैठी ! उँगलियों पर मलहम लगाये वह सोच रही थी.... क्या सचमुच सूरज  नज़दीक आने पर झुलसा देता है?"

                                                           कई साल बीत गए इस घटना को... अब भी वो सुबह उठकर सूरज को उगता देखती है! पर जैसे ही किरनें उसका मुख चूमने की कोशिश करती हैं..वह सहमकर पीछे हट जाती है! फिर खिडकी के पीछे से छुपकर सूरज को धरती के नज़दीक आता देखती है! फिर बुदबुदाती है.. " तुम भी मेरे नज़दीक आकर मुझे झुलसा दोगे न ? सूरज अपना आंसुओं से भीगा मुंह फेरकर अस्त होने लगता है और वो किरन जिसने लड़की को आगाह किया था..अपने किये पर पछताती है! इस हिले हुए भरोसे को अब वो कहाँ से वापस लाये..? उसके साथ पूरा आसमान खुदा से फ़रियाद करता है कि लड़की के जीवन को फिर से प्यार और विश्वास से महका दो... लड़की सुनती है और डबडबाई आँखों के साथ खिडकी बंद कर देती है!

Saturday, February 25, 2012

दूल्हे राजा.. कहो तो अभी जान दे दें

भारत वर्ष के समस्त दूल्हे राजाओं के चरणों में हमारा सादर प्रणाम... आज की हमारी ये पोस्ट आप सभी को सादर समर्पित है! हम आपके आभारी हैं कि आप विवाह कर रहे हैं.. और इसी महान कार्य को अंजाम देने के कारण आपको आज ये राजा की पदवी प्राप्त हुई है! इस लोकतंत्र के जमाने में केवल आप ही सच्चे राजा बच गए हैं...भले ही एक दिन के लिए सही मगर एक दिन के राजा तो आप ही हैं महाराज! हम सब आपकी प्रजा.. अब देखिये न आप कैसी शान से घोड़े पर सवार होकर सारे कसबे की ख़ाक छाना करते हैं! आपको आधे किलोमीटर की दूरी चार घंटे में तय करने में महारत हासिल है! कभी कभी आप प्रसन्नता के मारे रथ पर भी सवार हो जाया करते हैं तब आपकी छटा देखते ही बनती है! उस वक्त हम सब आपके आगे कीड़े मकोडों की भाँती कुलबुलाया करते हैं! आपकी शान से निकलती बरात जब पूरी सड़क पर छा जाती है तो हम सब राह देखा करते हैं कि आपकी सवारी आगे खिसके तो हम भी थोडा रेंग लें! यूं रेंग रेंग कर आपकी कृपा से हम भी अपनी मंजिल तक पहुँच ही जाते हैं! आपकी ये निकृष्ट प्रजा सड़क जाम होने पर यूं ही आपको कोसा करती है! ये नहीं जानती आप हम पर कितना बड़ा एहसान कर रहे हैं...शादी कर रहे हैं! इस एहसान के बदले हम कितने भी कष्ट झेल सकते हैं महाराज... ये गधे बच्चे आपके डी.जे. के शोर से नाहक ही परेशान होते हैं! ये मूरख नहीं जानते इनकी परीक्षाएं तो हर साल आएँगी..पर आपका विवाह बार बार थोड़े ही होगा! अगर आपकी खातिर एक साल लुढक भी गए तो कौन सी आफत टूट पड़ेगी! आप चिंता न करें.. रात भर हमारे कान फोड़ते रहिये , हम चूं तक नहीं करेंगे!

अहा.. क्या गज़ब ढाते हैं आप घोड़े पर सवार होकर! आपका वो निरपेक्ष सा, सुख दुख के परे दार्शनिक सा चेहरा हम देखते नहीं अघाते! आपके सामने आपके मित्रगण नाच नाचकर आपकी निरपेक्षता को भंग करने की कोशिश करते हैं... मगर मजाल है आपके तकुए से मुंह पर मुस्कान आ जाए! आपका एक मित्र स्थायी
रूप से नागिन बन कर सड़कों पर लोटता है... एक मित्र पतंग की डोर खींचते नहीं अघाता! एक मित्र पांव पटक पटक कर सड़क को बेदम कर देता है.... दूसरा मदिरा के नशे में इस कदर नृत्य करता है कि कई बार लगता है जैसे उसके पैंट में बिच्छू घुस गए हों! मगर मजाल है कि राजा साब के चेहरे की मनहूसियत भंग हो जाए! आपके चाचा जी ने तो नृत्य की वो मुद्रा बनायीं कि लाईट का गमला पकडे चल रही बालिका के पैर पर दचक गए...बालिका दर्द के मारे बिलबिलाई मगर मजाल है आपके चहरे पर एक शिकन भी आई हो! आप वाकई धन्य हैं! आप अपने साथ अपने एक कृपापात्र बच्चे को भी घोड़े पर बैठाते हैं.. मगर न जाने क्या बात है कि आपके सानिध्य प्राप्त होते ही बच्चा भी मनहूसियत ओढ़ लेता है! आप , बच्चा और घोडा तीनों दैवीय नज़र आते हैं!

आपने भी इस दिन के लिए न जाने कितने कष्ट उठाये हैं! जिंदगी भर आपके पिता आपको लतियाते रहे...माता गालियों से आपको नवाजती रही! आप स्कूटर पर टेढ़े बैठकर लड़कियों को लाइन मारते रहे और जूते खाते रहे! मास्टरों ने पानी पी पीकर आपको कोसा! बड़े कष्ट सहने के बाद आपके जीवन ये सौभाग्य शाली दिन आया है जब सबको आप पर फक्र है! आखिर आप विवाह कर रहे हैं! आगे चलकर आप हमारे देश को आबादी के मामले में दूसरे नंबर से पहले नंबर पर पहुंचाने में अपना योगदान देंगे! आप वीर हैं...बल्कि वीरों के वीर हैं! आपकी खातिर हम जितने कष्ट सहें ,
कम हैं! आप बेफिक्र होकर हमारी छाती पर मूंग डालिए महाराज... हम उफ़ तक नहीं करेंगे!