Sunday, February 13, 2011

वैलेंटाइन डे स्पेशल...हमारी तीन मोहब्बतों के नाम



जब मैंने प्यार किया फिल्म आई थी तब सलमान से एकदम से प्यार हो गया था! हम सभी सहेलियां पॉज़ कर कर के सलमान को देर तक देखते रहते थे! ग्यारवी क्लास में पढ़ते थे तब! मुझे याद है...ये फिल्म मैंने लगभग बीस बार देखी होगी एक साल में! सलमान खान के पोस्टकार्ड साइज़ के फोटो इकट्ठे करने का शौक में सौ डेड़ सौ फोटो जमा कर लिए थे और शान से अपनी सहेलियों को ऐसे दिखाते थे मानो कोई बहुत बड़ा खजाना हो!सलमान का हँसना..उसका चलना.. उसका पलटना सब दिल लिए जाता था! यहाँ तक कि कबूतर जा जा वाले गाने में उसका रोना....कितना हैंडसम लगा था! मेरे साथ सहेलियों का भी यही हाल था! हम सबका पहला प्यार सलमान था! इसके बाद दिल है कि मानता नहीं आई! और आमिर पे लट्टू हो गए! क्लास में केमिस्ट्री का पीरियड चल रहा होता और हम सहेलियां आमिर की क्यूट नेस को डिस्कस कर रहे होते थे!आमिर के भी पोस्टकार्ड साइज़ फोटो इकट्ठे होना शुरू हुए और अब हम बहुत अमीर हो गए थे! एक पौलिथिन में सलमान दूसरी पौलिथिन में रखे आमिर के साथ टक्कर लेते नज़र आते थे! एक आध सहेली ऐसी भी थी जो अमिताभ के फोटो इकट्ठे करती थी! उसे हम गुज़रे ज़माने के मानते थे! जैसे आज कोई लड़की आमिर और सलमान के फोटो दिखाएगी तो उसे भी गुज़रे ज़माने की माना जायेगा! हम तय नहीं कर पाते थे की आमिर ज्यादा अच्छा है या सलमान! इसलिए दोनों के लिए दिल में समान मोहब्बत कायम रही! वैसे भी प्यार तो कितनी भी बार हो सकता है और एक ही साथ दो से भी हो सकता है! एक अच्छी प्रेमिका की तरह हमने अपने प्रेम के बदले सलमान या आमिर से कुछ नहीं चाह! जब सलमान ने संगीता बिजलानी को छोड़ा तो हम उस पर गुस्सा भी हुए...शायद सामने होता तो डांट भी लगा देते! उसके पीछे ये कारण नहीं था कि संगीता को कितना बुरा लगा होगा बल्कि सलमान को कोई बुरा बोले..ये हमें अच्छा नहीं लगता था! आहा...पराकाष्ठा थी प्यार की! सोचिये कितना महान था हमारा प्रेम! ऐसे ही दो नावों की सवारी करते करते हम थोड़े बड़े हो गए और कॉलेज में आ गए!

कॉलेज में आने के बाद हमने तीसरी नाव पे पैर रखा! तीसरी नाव हमारे अगले प्यार जगजीत सिंह की थी! उन दिनों खाते, पीते, पढ़ते, नहीं पढ़ते...बस जगजीत सिंह ही बजा करते थे! एक छोटा सा बी पी एल सेन्यो का लाल रंग का टेप रिकॉर्डर हुआ करता था! सुबह नींद खुलते ही आँखे मलने के बा सीधा टेप पर हाथ जाता था और जगजीत सिंह शुरू हो जाते थे! सुबह सुबह ज्यादातर " गरज बरस प्यासी धरती को फिर पानी दे मौला" बजा करता था! उसके बाद डिजायर या इनसाईट का नंबर आता था! उस समय एक एक शेर ऐसा दिल चीर कर रख देता था कि बस लिखने वाला चाहे कोई भी हो मोहब्बत तो बस जग्गू दादा के लिए उफनती थी! हम बहने अक्सर बात करते... हाय, कितनी गहरी आवाज़ है मानो बस डूब ही जायेंगे! कितनी गहरी आँखें और न जाने क्या क्या! जगजीत के फुल साइज़ के पोस्टर दीवारों पर लग गए! इस मामले में जग्गू दादा सलमान और आमिर के पोस्ट कार्ड साइज़ फोटो पर भारी पड़ गए! जगजीत सिंह को एक बार लाइव सुनना हमारी सबसे बड़ी ख्वाहिश बन गया! प्यार में हिमाकत की भी हद हो जाती है....हम कहते अगर भगवान हमसे आकर पूछे कि क्या चाहिए तो बोलेंगे कि जगजीत सिंह सिर्फ हमारे लिए हमारी फरमाइशों पर ग़ज़ल गाये और हम अकेले बैठकर सुनते रहें! हम यहाँ तक कह जाते की अगर जगजीत अपनी आवाज़ में गालियाँ भी रिकॉर्ड कर दे तो भी हम दिन भर सुनते रहेंगे! अब इमैजिन करते हैं कि कैसा होता अगर सचमुच दिन भर जगजीत सिंह कि आवाज़ में बीप बीप वाली गालियाँ गूंजती रहती....सैड वोयलिन के म्युज़िक के साथ में! हमने ये भी तय कर लिया था कि जब हमारी शादी होगी तो उसमे हर रस्म के दौरान फ़िल्मी गानों कि जगह जगजीत की ग़ज़लें ही बजेंगी! और बड़ी मेहनत से हम बहनों ने हर अवसर के लिए ग़ज़लें छांट कर रखी थीं! शादी तो अब तक नहीं हुई...पर हाँ अगर कोई और ऐसा विचार रखता हो तो बता दे...हम अपनी मेहनत उसे देने को तैयार हैं! १९९८ में पहली बार इन्दोर में जगजीत सिंह का लाइव प्रोग्राम देखने का मौका मिला ! सबसे सस्ता वाला टिकट खरीद कर प्रोग्राम देखा था और धन्य हो गए थे! उसके बाद जब हम डी.एस.पी. बने तो एक पत्रिका में हमारा इंटरव्यू छपा तो एक एयरपोर्ट पर काम करने वाले एक मित्र ने मौका देखकर हमारे पत्रिका में छपे फोटो पर जगजीत सिंह का ऑटोग्राफ ले लिया था! उस पत्रिका को आज तक संभाल कर रखा है आखिर हमारे तीसरे प्यार की निशानी है!

फिर हम और बड़े हो गए...इतने कि किसी के लिए भी यूं मोहब्बत जागनी ही बंद हो गयी! हाँ..आखिरी बार जब वी मेट देखकर शाहिद जम गया था पर ये मोहब्बत बड़ी अल्पकालीन निकली! दो दिन बाद शाहिद का पत्ता साफ़! हाय अब क्यों न रहा वो क्रेज़....