Monday, November 16, 2009

जी चुरा ले गया वो टूटे दांत वाला लड़का....

आज की सुबह कुछ ख़ास थी! एक तो हलके कोहरे में डूबी हुई सड़कें जो रात भर बारिश के बाद धुली धुली और खूबसूरत नज़र आ रही थी! दूसरे एक ऐसा वाकया जिसने इस सुहानी सुबह को और भी सुहाना बना दिया! आज सुबह सुबह उठने में बहुत आलस आ रहा था....मगर इतनी सुन्दर सुबह में घूमने का लालच नहीं छोड़ पाई! और अच्छा ही हुआ वरना ऐसी सुबहें तो बहुत आतीं मगर वो टूटे दांत वाला लड़का शायद फिर दोबारा नहीं मिल पता! रोज़ की ही तरह मोबाइल का हैडफोन कानों में लगाए सुबह सुबह के पुराने गानों को सुनते हुए मैं वॉक पर निकली! " याद किया दिल ने कहाँ हो तुम...प्यार से पुकार लो जहां हो तुम..." गाना इस रूमानी सुबह को और भी रूमानी बना रहा था! थोड़ी दूर चलने पर देखा कि एक छोटा लड़का अपनी साइकल की उतरी हुई चेन चढाने की कोशिश कर रहा था! थोडा पास गयी तो देखा कि उसकी साइकल में स्टैंड नहीं था....एक हाथ से साइकल संभाले हुए वो किसी तरह दूसरे हाथ से चेन चढाने का प्रयास कर रहा था!जब मैं उसके पास पहुंची, तब भी वो अपनी चेन और साइकल से ही जूझ रहा था!

मैंने उसके पास जाकर पूछा " मैं पकड़ लूं तेरी साइकल?"
उसने बिना किसी झिझक के कहा " पकड़ लो ना"
मैंने उसकी साइकल थामी...वो दोनों हाथों से जल्दी जल्दी चेन चढाने लगा! मैंने इस बीच ध्यान से उसे देखा! करीब आठ-नौ बरस का वो बच्चा, नीली पेंट और काली टीशर्ट पहने था! गरीब घर का था ! शायद कबाड़ बीनने निकला है, उसकी साइकल के हैंडल पर लटकी कई खाली पौलिथिन देखकर मैंने अंदाजा लगाया! " हो गया"....कहते हुए वो खड़ा हुआ और मुझे देखकर मुस्कुराया! उसके मुस्कराहट के भीतर सामने का टूटा हुआ दांत बड़ा क्यूट लगा मुझे! एक दम से मन में आया कि इस दांत टूटने की उम्र में कबाड़ बीन रहा है ये नन्हा बच्चा! मैं भी मुस्कुराई, पूछा " कहाँ जा रहे हो?"
" काम पर... " बच्चा बोला और एक बार फिर वही सुन्दर सी मुस्कराहट बिखेरकर चला गया! मैं भी अपने रास्ते आगे बढ़ गयी!

अगला गाना था " दीवाना हुआ बादल..." सचमुच क्या खूबसूरत सुबह थी! चार कदम ही चली थी, इतने में देखा वो बच्चा वापस घूम कर मेरी तरफ आ रहा था! कुछ ही सेकण्ड में साइकल मेरे पास लाकर उसने रोकी, मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी ओर देखा! वो मुस्कुराया और मुझसे पूछा " दीदी...मैं आपको कहीं छोड़ दूं?" अब मैं भी अपनी मुस्कराहट ना रोक सकी ! उसकी इस बात पर मुझे उस पर इतना लाड आया की मन किया उसके दोनों गाल पकड़कर बूगी वूगी वुश कर दूं और उसके जोर की एक पप्पी दे दूं! लेकिन मैंने ऐसा किया नहीं! पता नहीं छोटी छोटी इच्छाएं पूरा करने से हमें हमारे अन्दर से ही कौन रोक देता है? मैं बोली " नहीं...मैं तो पैदल ही घूम रही हूँ?"
" अच्छा...." उसकी मुस्कराहट के पीछे टूटा दांत फिर झिलमिलाया और साइकल घुमा कर वो चला गया!

मैं तब तक उसे देखती रही जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गया! कहाँ से आई उस नन्हे से बच्चे में इतनी समझ? नहीं नहीं...ये समझ नहीं, ये तो उसकी संवेदनशीलता और प्यारा सा दिल था जो उसने शुक्रिया कहने के लिए मेरी मदद करनी चाही! उसका ये प्यारा सा अंदाज़ मेरे दिल में बस गया! शायद अगली बार किसी को शुक्रिया कहने से पहले इस बच्चे को मैं याद करुँगी जिसने मुझे बहुत प्यारा ढंग सिखा दिया कृतज्ञता जाहिर करने का! उस छुटके को मेरा सलाम जो मुझे एक यादगार सुहानी सुबह दे गया! ! भगवन उसे हमेशा इतना ही नेक बनाये रखे और संघर्ष की आँधियों में बिखरने से बचाए!

पर बात यहीं ख़त्म नहीं होती है! मैंने अपने एक दोस्त को सुबह का सारा वाकया बताया! उसने गौर से सुना और बोला " मैं होता तो थोड़ी दूर उसकी साइकल पर बैठकर ज़रूर जाता!" उसकी इस बात ने एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया! सही तो है...मैंने क्यों नहीं सोचा ये! अगर मैं अगले चौराहे तक उसकी साइकल पर बैठकर चली जाती तो वो बच्चा कितना खुश हो जाता! उसने मुझे कितना खुश किया बदले में मैं भी उसे उतना ही खुश कर सकती थी! ख़ुशी के बदले सिर्फ ख़ुशी ही तो दी जा सकती है ! है ना?....खैर अगली बार से याद रखूंगी!