Thursday, May 7, 2009

साहब...एक शेर पकडा है वो भी गूंगा बहरा

बीता महीना चुनाव के कारण बहुत व्यस्तता भरा बीता! एक तो बला की गर्मी , ऊपर से चुनाव. इससे ज्यादा भयावह कॉम्बिनेशन नहीं हो सकता! इतनी गर्मी में घूम घूम कर तीन बार तो लू लग गयी! हांलाकि जिसने जो सलाह दी..एक आध छोड़कर सब पर अमल भी किया! कैरी का पना, नीबू पानी, सत्तू ..सब कुछ पिया! साथ में प्याज भी रखी! पर ज्यादा काम न आये! बस कैलेंडर में तारीखें काट काट कर तीस अप्रैल गुज़र जाने का इंतज़ार करते रहे! चुनाव हो जाने के बाद जो पहला काम किया वो ये की उस रात शायद बारह घंटे से कुछ ज्यादा ही सोयी होउंगी! अब थोडा रिलेक्स महसूस हो रहा है....गाडी वापस पटरी पर आ गयी है! इस बीच कुछ लिखना पढना भी नहीं हो पाया! लेकिन अभी दो दिन पहले एक मजेदार वाकया हुआ....जो लिखने का मसाला दे गया! वही लिखे दे रही हूँ!

मैं बाज़ार से गुज़र रही थी...इतने में हमारे एक टी.आई. साहब का फोन आया! या तो सिग्नल प्रोब्लम रही होगी या आस पास भीड़ भड़क्का , जिसके कारण आवाज़ ठीक से सुनाई नहीं दे रही थी! टी.आई. साहब ने कहा " आज हमने एक चोर पकडा है!" हम गलती से सुन बैठे की एक शेर पकडा है! हो सकता है की दोष हमारे कानो का हो जिसे हमने सिग्नल की कमी या भीड़ भड़क्के पर थोप दिया है! जैसे ही हमने सुना, हम तो एकदम चमक गए! मन ही मन सोचा...अरे वाह जिसे हम आज तक लल्लू टाइप का समझते रहे...इसने तो कमाल कर दिया! सीधे शेर पकड़ लिया! हमें गर्व हुआ की विश्व का सबसे बहादुर टी.आई हमारे पास है! खैर हमने कहा " अच्छा....कैसे पकडा?"
टी.आई साहब बोले " कुछ नहीं साहब....यही थाने के पास घूम रहा था ...पकड़ लिया!" अब तक आर्श्चय हमारा स्थायी भाव बन चुका था हम बोले " अरे गज़ब...थाने के पास कैसे आ गया?...." आगे कुछ और पूछते इससे पहले ही टी. आई साहब ने आगे जोड़ा " साहब ...वो गूंगा बहरा भी है" अब तो आश्चर्य के मारे आँखें फट कर बाहर निकलने को थी " अरे तुम्हे कैसे पता चला की गूंगा है?" हमने पूछा! टी.आई . ने बड़े आराम से जवाब दिया " अरे साहब ...कुछ बोल ही नहीं रहा!" हम्म....सही है , दहाड़ नहीं रहा होगा तभी इसे लग रहा है की गूंगा है! हमने सोचा.. फिर हमने पूछा " गूंगा तो ठीक...पर तुम तो ये बताओ की तुमने ये कैसे जाना कि ये बहरा है?" टी. आई. ने उतने ही आराम से जवाब दिया " हम कुछ कहते हैं तो कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है!" वाह भाई वाह...कितना समझदार और बहादुर टी.आई है हमारा .....हम उससे बड़े प्रभावित हुए! फिर हमने पूछा " अब क्या करोगे उसका?" " साहब एक आध दिन रखते हैं थाने पर...फिर देखते हैं क्या करना है!" इतना सुनकर तो हम इतना घबराए कि फोन हाथ से छूटने को हुआ! एक पल को हवालात में बैठा हुआ शेर हमारी आँखों के आगे घूम गया! हमने कहा " नहीं नहीं ...जल्दी वन विभाग वालो को फोन करो...उन्हें सुपुर्द करो!" टी.आई. बोला " क्यों करें वन विभाग वालो को सुपुर्द ..हमने पकडा है! और वैसे भी उसके पास से कोई लकडी वकडी नहीं मिली है....मोबाइल मिले हैं!"
अब हमने अपने कानो को खुजाया और कहा " किसकी बात कर रहे हो"
" चोर की ...उसके पास से मोबाइल मिले हैं!" टी.आई. ने कहा!
" तो आपने चोर पकडा है...जो गूंगा बहरा है" हमने कन्फर्म किया
" जी सर...आपने क्या समझा?"
बड़ी मुश्किल से हंसी काबू में करते हुए हमने जवाब दिया " शेर"
अब तो वो भी हँसने लगा...हमने कहा टी.आई साहब दस मिनिट बाद फोन लगाना , हम जरा हंस ले!
खैर बाद में हमने सारी बात समझ ली....लेकिन अब इन मुए कानों पर कभी आँख बंद करके विश्वास नहीं करेंगे! मान लो कहीं बीच में फोन कट जाता और हम ये बात अपने अधिकारियों और प्रेस को बता देते तो......?