Wednesday, February 25, 2009

बस हमें लग गया सो लग गया....क्या कर लोगे हमारा

कल की ही तो बात है!एक परिचित बातों बातों में कह उठे..." कल शाम को आते हैं आपके घर" ठीक साहब,,आ जाइये" अब कल शाम भी आई! हम बाकी सारे प्रोग्राम निरस्त करके बैठे हैं साहब का इंतज़ार करते!शाम गहराने लगी...हम इंतज़ार करते रहे!फोन लगाने की कोशिश की ..मगर वो लगे नहीं!शाम और गहराई, अब रात कहलाने लगी मगर साहब न आये! रात को फोन भी लग गया!हमने पूछा ...आप आये नहीं?" उधर से जवाब आता है " अरे...हमें लगा आप नहीं होंगी घर पर ,इसलिए फिर नहीं ही आये"
" अरे..कैसे नहीं होंगे घर पर? ऐसा आपको क्यों लगा?" न चाहते हुए भी झुंझलाहट आ ही गयी!
" बस ..ऐसे ही लगा"
" अरे...ऐसे कैसे लगा? कोई लगने का कारण भी तो होगा?"
" अरे..नहीं कोई कारण नहीं! कहा ना.. बस ऐसे ही लगा" साहब भी लगता है हमारे निरर्थक प्रश्न से खीज गए!
ठीक है भैया...अब क्या कहें! धर दिया हमने भी फोन!
पर सही में इन लगने वालों से भारी परेशान हैं! दुनिया में हर बीमारी का इलाज हो सकता है पर ये लगने की बीमारी का कोई इलाज नहीं है! ऑफिस में बाबू से पूछो.." जानकारी तैयार हो गयी?" जवाब मिला .." नहीं क्योकी उन्हें लगा की शायद दो दिन बाद देनी है" अब आप तर्क ढूंढते फिरो की भाई साब जब तारीक आज की डाली है की आज ही तैयार करके देना है तो आपको कैसे लग गया?" उन्हें तो बस लग गया सो लग गया!

हमारे क्लास में एक लड़की जब चाहे तब होमवर्क करके नहीं लाती थी....कारण उसे जब चाहे लगता रहता था की शायद आचार्य जी आज स्कूल नहीं आयेंगे ! अगर आपने पूछने की धृष्टता कर दी की हे अन्तर्यामी बालिका ...तुझे ऐसा क्यों कर लग गया जबकि हमारे आचार्य जी ना बीमार दिखाई दे रहे थे कल और ना ही उन्होंने जिक्र किया की उनकी किसी संतान की साल गिरह है ! "
हर लगने की बीमारी से पीड़ित मरीज की तरह एक ही जवाब...." बस ऐसे ही लगा" अब आप निरुत्तर! अब चाहे खम्बा नोचो या अपने सर...इससे ज्यादा कुछ ना उगलवा पाओगे! हमने गौर किया की ये लगना भी दो प्रकार का होता है....एक तो वो जिसमे लगने के पीछे कोई कारण होता है कि भैये इस कारण से हमें ऐसा लगा!चलो इस प्रकार का लगना तो स्वीकार्य है लेकिन ये दूसरी तरह का लगना ज्यादा खतरनाक होता है जिसमे सारी बात बस यही आकर ख़तम हो जाती है कि " बस ..ऐसे ही लगा"
एक महोदय ने सारी गर्मी आम इसलिए नहीं खाए क्योकी उन्हें लगा कि शायद आम इस बार बहुत मंहगे होंगे! बिना भाव जाने पूछे उन्हें बस लग गया! घर से बाहर गुज़रते ठेले पर लादे आम और हांक लगते ठेलेवाले को देखकर भी भाव पूछने कि इच्छा नहीं जागी....कैसा विकट शक्तिशाली होता होगा ये लगने का भाव!

एक और ऐसे ही महानुभाव से हमारा परिचय तब हुआ था जब हम कॉलेज में संविदा पर पढ़ा रहे थे! मनोज शर्मा नाम के सज्जन भी वही पढने पधारे! कॉलेज में नए प्रिंसिपल आये थे सो हम सब संविदा वाले लेक्चरार उनसे मिलने पहुंचे...हम सब ने अपना परिचय दिया सिवाय शर्मा जी के! उन्होंने तभी अपना शुभ नाम बताया जब प्रिंसिपल ने पांच मिनिट इंतज़ार करने के बाद खुद ही पूछा की आपका परिचय भी दे ही दीजिये! जब बाद में हमने उनसे कारण पूछा की श्रीमान जी आपने अपना परिचय क्यों नहीं दिया खुद से? तो शर्मा जी न गर्व से बताया की वे कभी किसी को खुद से अपना नाम नहीं बताते क्योकी उन्हें लगता है की अगर उन्होंने किसी को कहा की मैं मनोज शर्मा हूँ और सामने वाले ने कह दिया की " मनोज शर्मा हो तो अपने घर बैठो" तो क्या इज्जत रह जायेगी!
अब प्रश्न बनता है की हे बुद्धिमान प्राणी कोई नाम बताने पर ऐसा क्यों कहेगा तो हर लगने की बीमारी से ग्रसित मानव की तरह एक ही जवाब....बस हमें ऐसा लगता है!" अब कर लो आप क्या कर लोगे!

और अपनी व्यथा कहाँ तक लिखूं ....कहीं ऐसा न हो की आप को लगने लगे की पता नहीं आज की पोस्ट हम कितनी लम्बी खींचने वाले हैं! पर आपको ऐसा क्यों लगेगा? क्या आज से पहले कभी हमने इत्ती लम्बी पोस्ट लिखी? खैर लगने का क्या है...हमें पता है आपका उत्तर! आपको बस ऐसे ही लगा न......?

Sunday, February 22, 2009

बेवफाई जुर्म क्यों नहीं ?


" क्या दिल टूटने से चोट नहीं लगती? क्या किसी की भावनाओं के साथ खेलने की कानून में कोई सजा नहीं है? क्या दिल पर लगी खरोंच शरीर पर आई खरोंच से कम दुःख देती है?" उसकी आंसुओं
से भीगे प्रश्न लगातार मेरे जेहन पर हथौडे की तरह पड़ रहे हैं! वो आज आई थी मेरे ऑफिस में.....दुखी, परेशान....बात बात पर आंसू छलक उठते थे! भर्राए गले से वो बोलती जा रही थी!मैं चुपचाप सुनती जा रही थी! उसे धोखा मिला था! तीन साल तक साथ जीने मरने की कसमे खाने वाले उसके बॉय फ्रेंड ने अचानक कहीं और सगाई कर ली थी! किसी तीसरे से उसे उसकी सगाई के बारे में पता चला ....और पूछने पर बॉय फ्रेंड का जवाब था- " बी प्रैक्टिकल यार...ये सब तो चलता है!अब मेरे मन में तुम्हारे लिए पहले जैसी फीलिंग नहीं हैं...हम बस अच्छे दोस्त हैं!" इतना कहकर लापरवाही से सर झटक कर वो चल दिया अपने रास्ते!शायद इसके बाद लड़की का फोन उठाने की ज़हमत भी नहीं की उसने!और लड़की उसी दिन से डिप्रेशन में है.....कभी वो पुरानी बातें याद करती है...कभी जानने की कोशिश करती है की आखिर उसके प्यार में कहाँ कमी रह गयी...कभी किसी तांत्रिक के पास जाती है की शायद कोई वशीकरण मन्त्र हो जो उसे प्यार को वापस उसकी और ला सके! पिछले दो महीने में पांच किलो वज़न कम कर चुकी है अपना! रात को नींद की गोली खाए बिना सो नहीं पा रही है!और आंसुओं का तो कोई हिसाब ही नहीं है! ये सब मुझे उसके साथ आई उसकी मां ने बताया!

सलाह देना कितना आसान होता है....मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की! जो जो भी बातें उसे जिंदगी की राह पर आगे बढ़ने के लिए मैं कह सकती थी..मैं कह रही थी! वो हाँ में सर हिलती....फिर कुछ ही पल में उसकी सिसकियों के साथ मेरे सारे उपदेश बह जाते! अचानक हिचकी भरी आवाज़ से उसने मुझसे पूछा " अगर कोई किसी को डंडे से मारे तो क्या अपराध बनेगा?" मैंने हाँ में सर हिलाया! उसका अगला प्रश्न था " डंडे की चोट कितने दिन में ठीक हो जायेगी?" मैंने कहा ...कुछ दिनों में!
उसने अपनी सूजी हुई आँखों से मेरी तरफ देखा और बोली " क्या मेरे दिल पर जो चोट लगी है...उससे ज्यादा चोट डंडे से मारने से लगती है? डंडे का घाव तो कुछ दिन में भर जायेगा...मेरे दिल पर लगे ज़ख्म जो पता नहीं कब भरेंगे...उसका कुछ भी नहीं? " क्या जो मेरे साथ हुआ वो शारीरिक प्रताड़ना से कम कष्टदायी है? फिर किसी का दिल तोड़ना अपराध की श्रेणी में क्यों नहीं आता?" मैंने उससे कहा ...अगर उस लड़के ने तुम्हारे साथ कोई ज्यादती की है या तुम्हारा शारीरिक शोषण किया है तो ये अपराध है! लड़की बीच में मुझे टोकती हुई बोली...." यानी की अपराध तभी होगा जब शरीर को चोट पहुंचे...वैसे उसने मेरे साथ कोई ज्यादती नहीं की है" इस बार उसकी आवाज़ में शिकायत और तल्खी दोनों ही थे!

थोडी देर सब खामोश रहे....फिर वो उठी और बोली " अब मैं चलती हूँ!" मैंने धीरे से सर हिला दिया! जाते जाते वो पलटी और बोली " शायद मैं धीरे धीरे इस स्थिति से उबर जाऊं पर अब किसी पर विश्वास नहीं कर पाउंगी....और शायद शादी भी न करून! काश आपके कानून में बेवफाई भी जुर्म होती ! "

मैं फिर अपने कमरे में अकेली बैठी थी....कागजों पर साइन भी करती जा रही थी पर उसका आंसू भरा चेहरा न तो हटता था आँखों के सामने से और न ही उसकी सिसकियों की आवाज़ कानो से अब तक अलग हो पायी है! सोचती हूँ वाकई उसके प्रश्न कितने जायज़ हैं! बेवफाई न तो कोई जुर्म है और न ही उसकी कोई सजा!

Friday, February 6, 2009

माँ...अब मैं बड़ा हो गया हूँ

मुर्गा मुर्गी प्यार से देखें,नन्हा चूजा खेल करे
कौन है जो आकर के मेरे,मात पिता का मेल करे

" दो कलियाँ " फिल्म का ये गाना सुनते ही मेरी एक दोस्त की आँखें भर आती थीं! और अच्छे खासे हंसते खेलते चेहरे पर गहन पीडा दिखाई देने लगती थी! उसके मम्मी पापा बचपन में ही एक दुसरे से अलग हो गए थे! वो अपनी मम्मी के पास रहकर ही बड़ी हुई! पापा के पास कभी छुट्टियों में जाना हुआ लेकिन पापा की दूसरी पत्नी की मौजूदगी के कारण अपने आपको एक मेहमान की तरह ही महसूस करती रही! हम लोग हमेशा बचते थे की उसके सामने अपने पापा के बारे में बात न करें क्योंकि ऐसे वक्त में उसे नज़र बचाकर आंसू पोंछते हमने देखा था! मेरी उम्र की मेरी दोस्त जिसके आज दो बच्चे हैं आज तक अपने अधूरे बचपन को नहीं भुला पायी! आज भी एक शिकायत भगवान् से और अपने माँ पिता से उसके दिल में गाँठ बनकर रहती है! माँ ने लाख चाहा की पिता की कमी महसूस न होने दे लेकिन अकेले अपनी जिम्मेदारी निभाती माँ कब गुस्सैल और चिडचिडी हो गयी उसे खुद पता न चला! अपनी उस दोस्त के लिए हमेशा मुझे भी उतना ही दुःख होता रहा! इसके बाद मन्नू भंडारी की किताब " आपका बंटी" पढ़ी! ऐसा लगा बंटी के रूप में अपनी दोस्त को ही देख रही हूँ! लगा जैसे सारा उपन्यास मेरी दोस्त की जुबानी सुन चुकी हूँ! बस केवल किरदार बदल गए हैं! इसके बाद जैसे सारे वो बच्चे जो माँ बाप के अलगाव की सजा भुगत रहे हैं.....बहुत दयनीय से लगने लगे!उसी वक्त जेहन में जो कुछ कौंधा ,कुछ यूं पन्ने पर आया!

माँ...अब मैं बड़ा हो गया हूँ
मैं जानता हूँ कि
तुझे बहुत फिक्र रहती है मेरी क्योकि
तुझे लगता है मैं छोटा हूँ अभी...

पर माँ..याद है तुझे
कल दीवार पर मैंने ही तो कील लगायी थी
तेरे ऑफिस से आने के पहले
मैंने अकेले ही बिस्तर की चादर बदली थी
कल ही तो दूध का पैकेट खरीद कर लाया था
और पैसे भी नहीं गिराए थे

माँ..मुझे पता है कि
पापा तुझसे झगडा करके चले गए हैं
और ये भी कि..
तू उन्हें बहुत याद करती है
याद तो मैं भी करता हूँ
पर मैं रोया तो तू कैसे चुप रहेगी

माँ,तू रोज़ मुझे अपनी गोद में सुलाती है
एक बार मेरी गोद में सर रखकर देख
एक बार मेरी बच्ची बनकर देख
तुझे अच्छा लगेगा माँ...
तुझे याद है न माँ

मैंने महीनों से कोई शरारत नहीं की है
स्कूल के किसी बच्चे से झगडा भी नही
याद कर माँ...मुझे नही भाता दूध
पर कितने दिनों से चुपचाप पी रहा हूं

मुझे ध्यान से देख माँ
मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूं
तुझे खुश रखना चाहता हूं
मैं अब छोटा नही रहा माँ
पूरे दस साल का हो गया हूं
मैं अब बड़ा हो गया हूं माँ.....

भगवान किसी बच्चे को दस साल की उम्र में बड़ा न बनाए....

Sunday, February 1, 2009

राजस्थान यात्रा- एक शरारत भरी शुरुआत

१५ तारीख से राजस्थान यात्रा पर निकली हुई थी! !यात्रा ख़त्म हुई पर खुमार अभी तक छाया हुआ है....शायद अभी कुछ दिन और रहेगा!जाने कितनी बार फोटो देख चुकी हूँ!मम्मी ,दोनों छोटी बहने गड्डू और मिन्नी, साथ में गड्डू की दोस्त अस्मिता और उसकी मम्मी हम छै लोगों का गैंग निकल पड़ा था राजस्थान घूमने! हमारे डेस्टिनेशन थे जोधपुर,जैसलमेर,माउन्ट आबू और उदयपुर ! यात्रा इतनी मजेदार और रोचक थी की लिखे बिना रह ही नहीं सकती! खासकर यात्रा की शुरुआत ही बड़ी जबरदस्त थी! हम लोग भोपाल से जोधपुर ट्रेन से गए !उसके बाद से हर जगह बाय रोड जाना था!ट्रेन में बैठते ही मम्मियों समेत हम सब मौज मस्ती के मूड में आ गए!बैठते ही जो ठहाके लगने शुरू हुए डब्बे में हर कोई एक एक बार हमें देखकर गया!और कोई मौका होता तो शायद हम असहज महसूस करते मगर यहाँ तो किसी की कोई परवाह नहीं थी!हमारे साथ जयपुर के एक अंकल आंटी बैठे थे!उन्होंने कहा की आप लोगों के आने से अच्छा लगा वरना कब से बैठे बैठे बोर हो रहे थे!तब हमने गौर किया की वाकई अगर हम लोग दो मिनिट को भी चुप हो जाएँ तो डब्बे में ऐसी घोर शान्ति थी मानो कोई अपहरण करके ले जा रहा हो!खैर उनकी इस बात से हमारी मस्ती को और बल प्राप्त हुआ!मगर हर किसी को कहाँ किसी की ख़ुशी सहन होती है!हमारे अगले केबिन में बैठे एक सज्जन को हमारे ठहाकों से तकलीफ थे! वे अचानक हमारी तरफ मुडे और बोले " अगर आपकी आज्ञा हो तो हम सो जाएँ?" छोटी बहन ने तपाक से उत्तर दिया " अवश्य सो जाइए" ! उस वक्त रात के मात्र नौ बजे थे! हम सब का दिमाग खराब...ये आदमी अभी से ही हम पर पाबंदी लगा रहा है!हमारे सपोर्ट में सामने बैठी जयपुर वाली आंटी आई और बोलीं " हम तो ग्यारह बजे खाना खाते हैं उसके बाद ही सोयेंगे!" हम खुश...जागने की एक वजह मिल गयी थी! जैसे तैसे वो सज्जन शांत हुए इतने में अगली साइड लोअर बर्थ पर लेटी एक आंटी बिफर गयीं " अब सब लोग बत्ती बंद करो और सो जाओ, मुझे सोना है!" अस्मिता बोली.." आप सो जाओ, हम लोग अभी से नहीं सोयेंगे!" आंटी ने इतनी भयंकर नफरत से हमें देखा की एक पल को तो हम सब सहम कर चुप हो गए!इतने में किसी के मोबाइल पर गाना बजा " अल्ला के बन्दे हंस दे.." इतने सुनना था की सब के सब फुल वोल्यूम में हंस दिए!आंटी क्रोध से उठ बैठीं!हमने इग्नोर मार दिया!इस यात्रा में हमने तीन चीज़ें नयी ईजाद की...इग्नोर मारना,अवोइड मारना और नेगलेक्ट मारना!सभी में चेहरे के एक्सप्रेशन अलग होते हैं!

खैर थोडी देर और हमने बातें कीं लेकिन आंटी जी की फटकार से थोडा डरे डरे भी थे! अब बातचीत खुसुर फुसुर में हो रही थी! आंटी जी ने अपनी बत्ती बुझाई और सो गयीं! हम दबे दबे हँसते रहे! इतने में धडाम की आवाज़ आई....ये क्या? देखा तो आंटी जी ने करवट बदली थी और नीचे गिर गयीं थीं!अब देखिये...हम बेचारों पर एक जुल्म और ढाया गया! खराबी करवट लेने की तकनीक में थी लेकिन इसका दोष आंटी ने हमारी बातों पर मढ़ दिया!" तुम लोगों की वजह से मैं गिर गयी...मार ही डालोगे क्या?" हम समझ ही न पाए की किसी की दबी दबी बातों की आवाज़ से कोई कैसे गिर सकता है! अंत में बहुत विचार विमर्श के बाद हमने खुद को क्लीन चिट दी की बातों से कोई नहीं गिरता है इसलिए फालतू का गिल्ट लादने की कोई ज़रुरत नहीं है! पर आंटी के गिरने के बाद हम सब खामोश हो गए और सो गए!

सुबह उठे तो जयपुर निकल चुका था!और अच्छी खासी ट्रेन पैसेंजर का रूप धारण कर चुकी थी!जयपुर से जोधपुर तक का सफ़र बार बार रुकते रुकाते करीब ७ घंटे में तय किया जबकि ४ घंटे में आराम से पहुंचा जा सकता है! जयपुर के बाद महसूस होने लगा था की अब राजस्थान में आ गए हैं!कोई खेत नहीं...कोई बड़े पेड़ नहीं!दूर दूर तक उजाड़ मैदान और कंटीले पौधे!पता चला की राजस्थान में लोग इतने कलरफुल कपडे इसलिए पहनते हैं ताकि हरियाली और वनस्पति न होने कि नीरसता से बचा जा सके! खैर दस बजे आंटी जी भी उठ गयीं...बाकी का सारा टाइम उन्होंने अपने झोले में लाये गए खाद्य पदार्थों का सेवन करने में खर्च किया! जोधपुर आते आते डब्बे में केवल ३-४ पैसेंजर ही रह गए थे!सो खाली डब्बे का फायदा उठाकर लगे हाथों ट्रेन में एक फोटो सेशन भी कर लिया!फोटो अपलोड करने में कुछ समस्या आरही है वरना ट्रेन का नज़ारा यहाँ ज़रूर दिखाती! दोपहर डेढ़ बजे हम लोग जोधपुर पहुँच गए!

इस बार ट्रेन यात्रा का विवरण....नेक्स्ट पोस्ट में आगे कि यात्रा के हाल लिखूंगी! जब तक आप हमसे या आंटी जी कि व्यथा से खुद को रिलेट कर सकते हैं!कई लोगों ने ऐसी यात्रा की होगी जो या तो हमारी तरह डांट खाए होंगे या आंटी की तरह दूसरों की मस्ती से परेशान हुए होंगे!अगली पोस्ट तक के लिए विदा....