Sunday, November 16, 2008

तेरी याद का एक पौधा



अपने दिल के गुलशन में मैंने
रोपा था तेरी याद का एक पौधा
मोहब्बत की खाद
अश्कों के पानी से
सींच सींच कर पाला बड़े प्यार से

आज बड़ा हो गया है मेरा ये पौधा
देख,कितने फूल आये हैं इसमें
और तू बिखर गयी है
फिजा में खुशबू बन के.....


जाते जाते समेट ली थी
तुम्हारी आहट मैने
अपने आगोश में,
हर शब बाहें खोल के
ज़मीन पे डाल देती हूँ इस आहट को

तुम्हे पता है न..
.मुझे अँधेरे में अकेले डर लगता है!

Thursday, November 6, 2008

कुत्ता कुर्सी पर


ये कुत्ते लोगों को इतने प्रिय क्यों होते हैं...समझ में ही नही आता! खासकर देसी काले भूरे खजैले कुत्ते से लोग इतनी प्रीति रखते हैं की उनके बच्चे जल भुन जाएँ!सुबह सुबह अखबार पढ़ते हुए अगर बच्चा आकर लटक जाए तो उसकी ऐसी तैसी कर देंगे लेकिन अगर गली में घूमता फिरता कुकुर आकर तलवे चाटने लगे तो जमाने भर का सुकून फेस पर दिखाई देने लगेगा! शायद असली वजह तलवे चाटना है, मुझे लगता है! इन कुत्तों से ही शायद लोगों ने तलवे चाटकर बौस को खुश रखने की कला सीखी है!


खैर ...बचपन में एक बार एक देसी कुत्ते ने मुझे काट खाया था..तब से मुझे तो उनसे नफरत सी हो गई है लेकिन आज सुबह से मन में सिर्फ़ कुत्तों का ही ख़याल आ रहा है! उसकी भी एक स्टोरी है...मन में रखी रही तो पेट फूलने लगेगा! कल बड़े हैपी मूड में एक थाने के काम काज की समीक्षा करने पहुँची! जाकर थाना प्रभारी की कुर्सी पर विराजमान हुई....कार्य शुरू हुआ!थोड़ा मन लगा ही था की अचानक पैरों पर अजीब सी गुदगुदी हुई , नीचे नज़र डाली तो चीख निकल गई!एक काले रंग का मरियल कुत्ता मेरे पैरों को लौलिपोप समझ कर चाटने में व्यस्त था! ये साला कहाँ से घुस आया....पूरी नफरत से हमने उसे फटकार कर भगाया! कें कें करता अपनी पुँछ समेटता निकल लिया कमरे के बाहर!

" क्या तुम लोग....ध्यान भी नही रखते, कुत्ते घुस आते हैं कमरे में?" मैंने स्टाफ को हड़काया ! सब लोग सहमकर पहले से ही भाग चुके कुत्ते को भागने का नाटक करने लगे!चलो हमने भी सोचा...कभी कभी ऐसा हो जाता है!वापस अपने लुप्त होते हुए हैपी मूड को पकड़ा और रजिस्टर में अपनी आँख गडा दी! पाँच मिनिट ही हुए होंगे की अचानक टेबल के नीचे किसी के ज़ोर ज़ोर से साँस लेने की आवाज़ आई....जी हाँ. कुत्ता ही साँसे भर रहा था मगर ये वो काला कुत्ता नही था! इस बार भूरे रंग का था और...ये भी शायद अनेरेक्जिया का मरीज़ था! परफेक्ट जीरो साइज़ फिगर!

एक पल को हँसी भी छूटने को हुई...मगर कंट्रोल कर गये, कहीं नफरत प्रेम में न बदलने लग जाए! जैसे तैसे इन भूरासिंह महाशय को भी लतिया कर बाहर का रास्ता दिखाया गया! इसके बाद हमने पूरे कमरे में बारीकी से नज़र दौडाई...कहीं कोई और कालिया या चितकबरा तो नही घुसा हुआ है!संतोष होने पर दुबारा काम में मन लगाने की कोशिश की...पर ये कुत्ते भी अजब चेंट हैं, कमरे से तो निकल गए मगर दिमाग से न निकले!

दिमाग भी कभी कभी अपनी ही चलाता है...पूछना चाहते थे कि कितने अपराध पेंडिंग हैं इस महीने में मगर पूछ बैठे " ये कुत्ते रोज़ आते हैं क्या?" मुंशी ने हाँ में सर हिलाया और कहा " यहीं बैठे रहते हैं दिनभर"
अच्छा...
" और इतना ही नही...कभी कभी तो साहब की कुर्सी पर भी बैठ जाते हैं" मुंशी ने हमारी बढती हुई दिलचस्पी को देखकर एक जानकारी और प्रदान की!और हमारी कुर्सी की और इशारा भी कर दिया!
" अरे बाप रे...मतलब जिस कुर्सी पर हम बैठे हैं यहाँ ये कुत्ते भी सुशोभित हो चुके हैं!हमारा दिमाग सुन्न सा हो गया! कौन ज्यादा अच्छा लगता होगा इस कुर्सी पर...हम या ...? ! जोर से सर को झटका हमने...ना जाने कैसे कैसे ख़याल आने लग पड़े हैं!
अब तक मुंशी पूरी रौ में आ गया था....उसे ना जाने कैसे लग गया कि हम इन कुत्तों के बारे में सारी बातें जान लेना चाहते हैं ,जबकि इस बात के बाद तो हम इन नामुरादों के बारे में कुछ नही जानना चाहते थे!मगर मुंशी महोदय को कहाँ चैन था...बोल ही पड़े " साहब...कल तो कुर्सी गन्दी भी कर गया था...आज ही धुली है!"

मर गये...कमबख्त अपने मुंह बंद नही रख सकता था! अब हालत इतनी ख़राब , ना कुर्सी से उठते बने और ना ही बैठते बने! हाथ का बिस्किट छूटकर प्लेट में गिर गया...कहीं इसे भी तो...! उफ़, इससे ज्यादा सोचते भी नही बना ! अगले दो मिनिट में ही दूसरे ज़रूरी काम का बहाना बनाकर बढ़ लिए हम भी! बाहर निकले तो देखा भूरा और कालिया दोनों गेट के पास बैठे थे...शायद हमारे जाने का इंतज़ार कर रहे थे!पता नही हमें भ्रम हुआ या दोनों सचमुच हमें देखकर मुस्कुराए!

पर अभी तक यही सोच रहे हैं कि इन कुत्तों में ऐसी क्या बात है जो इनकी पहुँच थानेदार की कुर्सी तक हो गई है...बन्दर हो तो फ़िर भी समझ में आता है की और कुछ नही तो खाली बैठे सर ही खुजा देगा मगर ये कुत्ते ऐसा क्या काम करते हैं थानेदार का? दिमाग ज्यादा तो कुछ नही सोच पा रहा है....बस वही तलवे चाटने पर जाकर अटक रहा है! सचमुच तलवे चाटने की महिमा ही न्यारी है!आप क्या कहते हैं...?

Monday, November 3, 2008

क्लर्क के एक्जाम में मैं फर्स्ट आया था


गर्व से माँ बाप का मस्तक उठाया था
जब क्लर्क के एक्जाम में मैं फर्स्ट आया था

पर जल्द ही दुनिया ने आइना दिखा दिया
सच्चाई से बच्चों का पेट भर न पाया था

ईमान और गैरत से जब बात न बनी
चापलूसी का हुनर तब काम आया था

पहली बार घर पे मैं मिठाई ले गया
जब सौ रुपये में फाइल को आगे बढाया था

गहराते हुए आसमान से नज़रें फेर के
चढ़ते हुए सूरज को सज़दे करके आया था

बिक गया ईमान तो दिल संग हो गया
बेबस का काम भी मैं मुफ्त कर न पाया था

पता न चला मजबूरी कब शौक बन गयी
ख़ुशी ख़ुशी मैं हर गुनाह करता आया था

करके गुनाह मैंने आहें खरीद लीं
बेटे ने कल नशे में मुझपे हाथ उठाया था

क्यों चुभने लगी कान में उन सिक्कों की खनक
जिनके लिए खुद को कभी मैं बेच आया था