Saturday, June 28, 2008

ये भी तो इबादत है....है न?

लोग अक्सर मुझे नास्तिक कहते हैं....क्या ये इबादत नहीं है?


आज की सुबह वाकई जादुई थी
ठंडी हवा ने हौले से
सहलाया मेरे सर को
उठी तो देखा
हर फूल,हर पत्ते पर
चमक रहे थे ओस के मोती
खिलखिलाता हुआ सूरज
छत की मुंडेर पर गाती चिड़िया
मुझे सुप्रभात कह रहे थे...


मैंने खुदा को शुक्रिया कहा
और चाहा कि आज का दिन
बिताऊ खुदा की इबादत में

फिर मैंने...
दूध वाले को एक प्याला चाय पिलाई
एक गुलाब दिया अपनी माँ को
माली काका को भेजा
टिकिट देकर फिल्म देखने
कचरा बीनते एक बच्चे को
खिलाया पिज्जा हट का पिज्जा
गली में घूमते एक नन्हें से पिल्ले को
नहला दिया गरम पानी से

शाम को जब ऊपर निगाह डाली
खुदा बादलों के पीछे से
मुस्कुरा रहा था

शायद खुदा ने मेरी इबादत कुबूल कर ली...

Monday, June 23, 2008

दर्द बांटना बनमाला का ..

पिछली पोस्ट में हमने बताया की किस प्रकार हमने न सिर्फ कविवर "विरही" जी के दर्द को बांटा बल्कि दर्द के नए आयाम भी समझे...तो दर्द बांटने के इसी सिलसिले पर आगे बढ़ते हुए हम कल पहुंचे उनकी प्रेमिका बनमाला के घर...बनमाला को हम उसकी शादी होने के बाद से ही जानते हैं..वो ऐसे कि हम लच्छू कचौडी वाले के बगल वाली गली में रहते हैं और लच्छू के सामने रामा डोसे वाले के पीछे वाली गली में बनमाला की ससुराल है.. तो मोहल्ले पड़ोस के नाते सिर्फ नजरी पहचान है...बातचीत कभी हो न सकी! हाँ..अक्सर ठेले पर डोसा या कचौडी खाते हम कई बार टकराए..पर हम दोनों ही खाने में इतने लीन रहते थे कि मीठी चटनी मांगने या साम्भर में तेज़ नमक की शिकायत करने के अलावा कोई और बात होने की गुंजाइश ही नहीं रहती थी! बनमाला के पति कि साडियों की दुकान है इसलिए वह रोज़ नयी नयी साडियां पहनती है और उसकी हर साडी पर कहीं न कहीं चटनी या साम्भर के दाग भी मिल ही जायेंगे...मोहल्ले में तो चर्चा ये भी है की एक ग्राहक दूकान से साडी खरीद कर ले गयी तो गलती से साम्भर का दाग और खुशबू दोनों साडी में रह गए थे...बनमाला को उसके पति ने बहुत फटकारा था साडी बिना धोये दूकान पर भिजवाने के लिए..

तो साहब ,जैसे ही बनमाला का पति दुकान के लिए रवाना हुआ,हम पहुँच गए बनमाला के घर...पहले तो हमें देखकर वह थोडा चौंकी लेकिन अपने ठेला मित्र को देखकर उसके चेहरे पर एक परिचित मुस्कान भी उभरी! हमें बाकायदा बैठाया...हमने भी ज्यादा टाइम न बर्बाद करते हुए उसे आने का प्रयोजन बताया!
हम कोई बात शुरू करते ,इसके पहले बनमाला फुर्ती से गयी और कुछ चिप्स,मठरी वगेरह ले आई खाने को! कुछ मिनिट को तो चिप्स खाने की करकर ही कमरे में गूंजती रही! हमें गुस्सा आया,हम यहाँ दुःख बांटने आये हैं और ये तो खाने में भिड़ी है!

आप यहाँ खाने में लगी हैं ,उधेर बेचारे विरही जी आपके ग़म में चाँद तारों की ऐसी तैसी किये पड़े हैं !" हमसे अब रहा न गया!
अचानक बनमाला के चेहरे के भाव बदले और कुछ कुछ मीनाकुमारी से मिलते जुलते भाव उसके चेहरे पर छा गए...हमें अच्छा लगा कि चलो दर्द बांटने की गुंजाईश है वरना ठेले पर कचौडी पेलती बनमाला को देखकर दुनिया का बड़े से बड़ा विद्वान् भी यह नहीं कह सकता था कि इसे पिछले दस जन्मों में भी कोई दुःख हुआ होगा!
ये बताओ..तुमने विरही को क्यों छोडा?"
ये तुमसे किसने कहा...? रमेश ने? " बनमाला ने चिप्स का मसाला अपनी साडी के पल्लू से पोंछते हुए कहा!
ये रमेश कौन है?" हम थोडा चकराए!
अरे...तुम्हारे विरही जी का असली नाम रमेश ही तो है...
अच्छा...हमें तो पता ही नहीं था..चलो जानकारी में इजाफा हुआ..." नहीं नहीं..रमेश क्यों कहेंगे...वो तो आज भी आपके प्रेम में डूबे हुए हैं
मैं नहीं डूबी क्या?" बनमाला थोडा बिगड़ी!
नहीं नहीं..मैंने ऐसा नहीं कहा, एक्चुअली आपको इतना खाते देखकर मैं समझा आप बहुत खुश हैं" मैंने स्तिथि स्पष्ट की!
तो क्या मैं अपनी ख़ुशी से खाती हूँ?
तो किसकी ख़ुशी से खाती हैं आप?
वो तो ग़म भुलाने के लिए अपना आप को खाने में व्यस्त रखती हूँ...वरना एक कौर मुंह में डालने का मन नहीं होता!" बनमाला ने एक चिप्स और उठाया!
"धन्य हैं आप..बिना मन के चिप्स के दो पैकेट और पच्चीस तीस मठरी बीस मिनिट में आपने उदरस्थ कर लिए...एक हम हैं कभी बुखार आ जाये और कड़वा मुंह रहे तो कोई माई का लाल हमें एक ब्रेड तक नहीं खिला सकता... " हमने बनमाला की प्रशंसा की!
" अरे..ब्रेड व्रेड तो मैं भी नहीं खा पाती हूँ .वो तो थोडा चटपटा हो तो गले के नीचे चला भी जाता है!
ओह..अब समझे.. उधर कविवर खुद को व्यस्त रखने के लिए मदिरा से लेकर आमरस तक हर पेय पदार्थ पिए जा रहे हैं,इधर बनमाला खाद्य सामग्री से अपना ग़म गलत कर रही हैं...वाह कैमिस्ट्री हो तो ऐसी!
तभी बनमाला ने एक गहरी आह भरी...बिलकुल वैसी ही जैसी कविवर भरते हैं...डर के मारे एक चूहा सोफे के नीचे से निकल कर भागा! सचमुच दोनों का दुःख समान स्तर का था....हमें यकीन हो गया! लगता है ..ये ज्यादा दुखी हो गयी ! हमारा मन ग्लानि से भर उठा!
लगता है...मैंने आपको और दुखी कर दिया!" हमने कहा
" आपने मेरे ज़ख्म उधेड़ दिए....अब चिप्स से काम नहीं चलेगा..चॉकलेट खानी पड़ेगी..मैंने किसी किताब में पढ़ा था कि ज्यादा डिप्रेशन हो तो चॉकलेट खानी चाहिए!" बनमाला ने फिर एक आह भरी!

हमने अपनी जेब टटोली...आज ही दूकान से सौदा लेते वक्त दूकानदार ने एक रूपया खुल्ला न होने के कारण एक पारले की चॉकलेट दे दी थी! हमने तत्काल निकालकर पेश की......चलो , आज किसी की उदासी कम करने में हम काम आये!
बनमाला ने चॉकलेट हाथ में लेते हुए पूछा " कोई किटकैट वगेरह नहीं है क्या?"
आज तो नहीं है...अगली बार आते वक्त ध्यान रखेंगे.." हमने माफ़ी माँगी!
ये बताओ..तुम्हारी और विरही जी की शादी क्यों न हो सकी? किसने अड़ंगा डाला? " हमने थोड़े आवेश में बनमाला से पूछा!
"किसी ने नहीं..." बनमाला चॉकलेट चूसती हुई बोली
मतलब...? फिर आप दोनों ने शादी क्यों नहीं की?
प्यार की खातिर...आपको नहीं पता विरह ही प्रेम की पराकाष्ठा है! बिना दर्द पाए कोई प्रेम पूजा में नहीं बदलता! घरवाले तो तैयार थे...पर हमने त्याग की राह चुनी!" बनमाला भाव विह्वल होते हुए बोली!

क्या...? " हमारा मुंह खुला का खुला रह गया!
हाँ...और इसके अलावा हमारा प्रेम व्यवहारिक भी था...रमेश बेरोजगार थे तब , कैसे शादी कर लेती मैं उनसे और रमेश की भी इच्छा थी की ससुराल से जो दहेज़ मिले उससे कोई धंधा जमाया जाए...मेरे पिता ने तो दहेज़ देने से साफ़ मना कर दिया था....तो हमने प्रेम को विरह में बदल दिया और हमेशा के लिए अमर कर दिया" बनमाला का गला भर आया कहते कहते!
आप ही बताइए...अगर मैंने उनसे शादी कर ली होती तो क्या आज वे इतने बड़े कवि बन पाते?
नहीं बन पाते...!" हमने बेखयाली में जवाब दिया!
अब आप जाइए.. मुझे एक फ़ूड फेस्टिवल में जाना है....मेरी सहेली आती ही होगी!
आपसे बात करके मुझे हल्का महसूस हुआ! आते रहिये" बनमाला ने हमें दरवाज़ा दिखाते हुए कहा!
अभी भी हम थोड़े अवाक से ही थे...
" आपका ग़म तो प्रोपरली बँटा न?" हमें अपनी पड़ी थी!
हाँ ,हाँ...बँटा! अब आप जाओ" बनमाला हमें फुटाने को बेताब दिखी!
हमने नमस्ते बोला और चल दिए.....
वाकई कितना महान काम होता है किसी का दर्द हल्का करना...और फिर ऐसा दर्द जहां जीवन जीने की नयी कला सीखने को मिल जाए...प्रणाम करते हैं हम विरही जी और बनमाला को! अब कम से कम ये फ़िक्र नहीं है...अगर भूल चूक से कभी दिल टूटने के आसार दिखे तो सही फार्मूला मिल गया है..."खाओ पियो,ऐश करो...उदासी भगाओ,सेहत बनाओ" अगर आप में से कभी किसी का दिल चोट खा बैठे तो हमसे संपर्क करे...विरही जी और बनमाला का पता हम बता देंगे...
अच्छा तो अब चलते हैं...अब हमें दर्द बांटने में आनंद आने लगा है...फिर किसी का दर्द बांटा तो आपको अवश्य बताएँगे ...

Thursday, June 19, 2008

दर्द बांटना कविवर दुखीमन "विरही" का



आज खाली बैठे बैठे कोई पुस्तक पढ़ रहे थे उसमे लेखक ने कई जगह बार बार लिखा कि कुछ ऐसा करो कि दूसरों का दर्द कम कर सको तब ही जीवन सार्थक है...दिमाग पर पूरा जोर पेल दिया लेकिन पिछले कई बरसों में ऐसा कोई काम ध्यान नहीं आया जब हमने किसी का दर्द कम किया हो!कम करना तो दूर हमें तो किसी का दर्द सुनते भी बोरियत होती थी! लेकिन इस लेख ने सोयी आत्मा को जगाया और हमने सोचा हम भी किसी का दर्द बाँट कर अपना जीवन सार्थक कर लें... दर्द के बारे में सोचते ही कविवर दुखी मन "विरही" याद आ गए...नाम में ही इतना दर्द है इनसे ज्यादा दुखी कौन मिलेगा..चलो दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं देना पड़ा..हम चल दिए उनके घर उनका ग़म बांटने!

दुखी मन "विरही" एक कविवर हैं जो न जाने कब से सिर्फ दर्द में सनी कवितायें ही लिखते आ रहे हैं...हम भी वक्त के मारे उनके जबरन के श्रोताओं में से हैं! उनकी कवितायें जब भी सुनो जाने कैसा कैसा लगने लगता है...ऐसा लगता है जैसे संसार की हर चल अचल वस्तु सिर्फ आंसू बहाने के लिए ही पैदा हुई है...बताते हैं की पहले कविवर ऐसे नहीं थे..एक बार प्यार में दिल विल टूट गया तब से कलम दर्द उगल रही है...
रात के दस बजे थे...हम चल दिए कड़ा मन करके कवि के घर! पता था कुछ कविताओं का डोज़ तो लेना ही पड़ेगा! रास्ते में उनके अक जिगरी दोस्त मिल गए ..जिनसे हमें पता चला कि कविवर इस समय पब में गए हुए हैं...कवि,दुखी,पब....कुछ तालमेल समझ नहीं आया पर घर से पक्का इरादा करके निकले थे कि आज तो दर्द बांटकर ही लौटेंगे...पहुँच गए पब में..
देखा तो कविवर जाम के घूंटों के साथ नृत्य देखने में मग्न थे...एक पल को तो हमें लगा कि शायद हमें आने में देर हो गयी हमसे पहले कोई और इनका दर्द बांटकर चला गया...
खैर..हम पहुंचे कवि के पास और पास ही खाली कुर्सी पर बैठ गए...कविराज ने जैसे ही हमें देखा एक पल को तो चौंक गए फिर उनके चेहरे पर वही ट्रेजेडी किंग वाले चिर परिचित भाव गहरा गए...हमें तसल्ली हुई..चलो अभी ग़म मरा नहीं हम नाहक ही परेशान हो रहे थे ये सोचकर कि दर्द बांटने का मौका हाथ से चला गया!
तुम यहाँ?" कवि आह सी भरकर बोले
बस..यूं ही आपका ग़म बांटने चला आया!
क्या बांटोगे तुम मेरा ग़म..मैं तो खुद ही टुकडों टुकडों में बँटा हुआ हूँ
मन की प्रसन्नता को छुपाते हुए हमने कहा "नहीं..आज हम आपका दर्द सुने बिना नहीं जायेंगे
बस..जिंदा हूँ, जीने की सज़ा भुगत रहा हूँ...
यहाँ पब में सजा भुगत रहे हैं...?हमसे पूछे बिना रहे नहीं गया!
तुम नहीं समझोगे..तुमने कभी प्रेम किया है"
नहीं...हमने न में अपने मुंडी हिलाई!

जब से ये दिल चाक हुआ है...
क्या हुआ है...?हमने बीच में टोका!
अरे...तुम नॉन शायर लोगों के साथ यही प्रोब्लम है..सारे मूड का कचरा कर देते हो..!" कविवर सुरूर में तो थे ही,भड़क गए!
अच्छा ,अच्छा ठीक है...समझ गए ..आगे बोलिए" हमने बिना समझे ही कहा!
तुमने सुना तो होगा ही कि ग़म का मारा आदमी कितना अकेला होता है
हाँ हाँ...सुना है ...तभी तो ये सोचकर कि आप अकेले सुनसान जगह पर बैठे आंसू बहा रहे होंगे ,हम चले आये आपके पास पर आप तो भीड़ भड़क्के मैं बैठे हैं...कहा हैं अकेले?

अरे...पहले के प्रेमी मूर्ख और अनपढ़ हुआ करते थे..नहीं जानते थे कि इस उदासी से कैसे निकला जाए पर हम मॉडर्न लवर हैं...पढ़े लिखे भी हैं सो जानते हैं कि डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को खाली नहीं बैठना चाहिए...इसलिए बस किसी तरह मन लगा रहे हैं ताकि उसकी यादें कुछ पल को दिल से दूर जा सकें वरना तो जरा सा खाली बैठे नहीं कि उसकी यादें दिल में मकां कर लेती हैं...

कविवर...आप तो सरकारी बाबू हैं...काम में भी तो खुद को दिन भर व्यस्त रख सकते हैं...?
सरकारी हैं तभी तो....काम ही नहीं है कुछ! ऑफिस में हाजिरी रजिस्टर पर साइन करके चले आते हैं..बड़े बाबू से ठीकठाक सैटिंग है! तुम प्राइवेट लोग मज़े में हो...सुबह १० से रात ८ बजे तक काम में जुते रहते हो...लकी मैन!"
हमें समझ नहीं आया की कवी ने अपनी व्यथा सुनाई या हमारा मज़ाक उड़ाया! लेकिन अभी ये सब सोचने का वक्त नहीं था!हमारे मन में एक उत्सुकता और पैदा हुई....रहा न गया तो पूछ बैठे!
"कविवर...बुरा न माने तो एक बात बताएं....आपके पास इतना पैसा कहाँ से आता है की आप रोज़ पब जाकर ग़म गलत कर सके!
अरे अभी बताया न...सरकारी कर्मचारी हैं! फिर भी फालतू बात पूछते हो" कवि ने थोडा सा झिड़का !

यहाँ हम कोई ख़ुशी से थोड़े ही आते हैं...मजबूरी है.!.".कवि ने फिर निराशा का दामन थामा!
फिर तो ठीक है....खुद पर हमें शर्म आई ..कविवर तो यहाँ ग़म गलत करने आये हैं और हम जाने क्या सोच बैठे थे!
तुमने दिल के दुखते तार छेड़ दिए....थोडा नृत्य कर लूं तो शायद हलका महसूस करूं .." यह कहते हुए कविराज डांस फ्लोर पर उतर आये..दुखी मन से उन्होंने आधा घंटा झूम कर नृत्य किया!इसके बाद एक पैग और लगाकर बोले "चलो घर...!आज तुम्हे दास्ताने दिल सुनाता हूँ!"

चलिए...हम तो पूरी कथा सुनने को बेताब थे ही...दिन में चार घंटे सो लिए थे सो जागने की कोई टेंशन नहीं थी!
रास्ते में कविवर को जूस की दूकान खुली दिखी सो बोले चलो आमरस ही पीते चलें...हमें क्या आपत्ति भला! दो दो गिलास रस गटका और पहुंचे कविवर के घर...पहुंचते ही कवि ने ऐसी गहरी आह भरी कि डर के मारे छिपकली ,मछर ,कोकरोच सब भाग गए!आज हमें राज़ पता चला कि कवि के घर में ये कीडे मकोडे क्यों नहीं पाए जाते....हमने निश्चय किया कि किसी दिन कवि का अच्छा मूड देखकर ऐसी आह भरना सीखेंगे!

कवि न कहना शुरू किया.."मैं क्या उदास हुआ, चाँद की ऑंखें भी भर आयीं, तारों का मुंह उतर गया और आसमान कराह उठा...
कविवर...आप अपना दुःख बांटने वाले थे!" मैंने हिम्मत करके बीच में टोका
वही तो बता रहा हूँ ,तू क्या समझता है मैं बरात के गीत गा रहा हूँ? कवि फिर से भड़क गए
नहीं नहीं..कहिये प्लीज़
अब तो ये दीवार भी मेरी दशा पर आंसू बहाने लगी है...कवि ने दीवार की तरफ इशारा करते हुए कहा!
अरे कविवर....छत सुधरवा लो..सीलन बैठ रही है दीवार में!" हमने बमुश्किल हसी रोकते हुए कहा
तुम दुनियादार लोग क्या जानो दिल की बातों को? इस वार्तालाप के बाद कवि एक एक प्याली चाय बना लाये!चाय पीने के बाद कवि ने पेड़,पत्ते ,तितली,पहाड़,समंदर आदि लोगों को भी आंसू बहवाये! हमने हिम्मत करके पूछा "कविवर, कौन है वो बेवफा जिसने आपको ऐसी कवितायें लिखने पर मजबूर कर दिया!
बेवफा न कहो मेरी बनमाला को
हमारा माथा ठनका "वही बनमाला तो नहीं जो रामा डोसे वाले के पीछे वाली गली में रहती है!
हाँ हाँ..वही तुम कैसे जानते हो?कवि व्याकुल हुए!
अरे आप भी किसके चक्कर में पड़े हो..उसकी तो शादी हो गयी एक साड़ी की दुकान वाले से!रोज़ नयी नयी साडियां पहन कर घूमती है और मोटी भी हो गयी है शादी के बाद से..उसे देखकर तो कहीं से नहीं लगता कि आपसे बिछुड़ने पर उसकी काया में एक मिली मीटर की भी कमी आई होगी! हमेशा दांत दिखाती रहती है!
अरे नहीं...तुम भी उसकी हसी पर ही गए..अपने अन्दर सैकडों सागरों का दुःख समाये मुस्कुराती रहती है.." कवि ने फिर से गहरी सांस छोड़ी!
आपसे कभी कहा उसने ऐसा ?
कहना क्या...निगाहों से सब समझ आता है!हम उसके दिल की दशा जानते हैं!उसके पास तो कोई नहीं जिससे वो अपना दर्द बाँट सके!
ओह..तो ये बात है .बेचारी ग़म की मारी है ,कैसे अपना ग़म छुपा कर नयी साडियां पहनती होगी? कैसे आंसू भरी आँखों से रामा के यहाँ जाकर डोसा खाती होगी? हमारा मन दया से भर उठा!
हमने निश्चय किया कि कल जाकर बनमाला का भी दर्द बाँटेंगे!हम उठने लगे तो कवि ने केसर वाला दूध पिलाया! अभी तक हमने सुना था कि ग़म में लोग शराब पीने लगते हैं पर पहली बार देखा कि शराब के साथ जूस,चाय,दूध सब पीने लगे हैं कविराज! शायद ग़म ज्यादा होता हो तो ज्यादा सामग्री की आवश्यकता पड़ती हो!
चलिए आज हमने कविवर का दर्द बांटा....कल बनमाला का हाल भी सुनेंगे और अगली पोस्ट में आपके साथ बाँटेंगे!तब तक के लिए विदा.....

Tuesday, June 17, 2008

उदास,सहमा, नन्हा सा बच्चा


एक गरीब नन्हा सा बच्चा
टूटा हुआ,उदास,सहमा सा
बैठा है सर झुकाए
हथेलियों से अपना मुंह छिपाए

पिता ने बचपन में ही साथ छोड़ दिया
माँ ने भी कल जिंदगी से मुंह मोड़ लिया

कहाँ जाए ,क्या करे,
कुछ समझ नहीं आता है
जिंदगी की कड़ी धूप.कोई साया नहीं पाता है

खोया इन्ही विचारों में, आंसू पोंछता वो
चल दिया रोटी की तलाश में
चिलचिलाती धूप में एक बादल का टुकडा
लगातार चल रहा था उसके ऊपर
उसके मन से आवाज़ आई
ओह माँ, इसे तुमने भेजा है ना

आंसू भरी आँखों से ऊपर देखा उसने
बादल से भी एक बूँद गिरी और
आंसू से मिलकर गाल पर लुढ़क गयी....

Saturday, June 14, 2008

सचमुच बदल गई हूँ मैं

आज छुट्टी का दिन था ..अमूमन छुट्टी वाले दिन मैं सुबह ड्राइवर को भी फ्री छोड़ देती हूँ इस हिदायत के साथ की अपना मोबाइल चालू रखे जिससे अचानक कहीं जाना पड़े तो आ जाए!आज भी ड्राइवर को मैंने फोन कर दिया था की शाम को ठीक ६ बजे आ जाए....मैंने शाम को ६.१५ पर बाहर निकल कर देखा तो गाड़ी नही दिखी...मेरे अन्दर धैर्य थोड़ा कम ही है...वापस अन्दर आ गई...५ मिनिट बाद दुबारा बाहर निकली तो फ़िर से गाड़ी नही दिखी..गुस्से में ड्राइवर को फोन लगाया... २ सेकंड में ही गाड़ी लेकर हाजिर हो गया...मैंने आव देखा न ताव ..चिल्लाना शुरू कर दिया...जब मैं चुप हुई तब उसने बताया की पानी बरस रहा था तो उसने गाड़ी को साइड में लगा लिया था ताकि भीगे नही...आ तो वह ६ बजे ही गया था!मुझे बुरा लगा की उसे बिना सुने ही मैंने बुरा भला कह दिया...तत्काल उसे मैंने सौरी बोला!बात आई गई हो गई लेकिन मैं सोच रही थी.....पिछले कुछ सालों में मैं कितना बदल गई हूँ.....बचपन से ही मुझे माफ़ी मांगने में अपनी बेईज्ज़ती महसूस होती थी! अगर कभी बचपन में कोई गलती हो जाती और मम्मी पापा कहते की माफ़ी मांग लो हम कुछ नही कहेंगे...लेकिन मैं गलती मानने से साफ इनकार कर देती थी...

आज ऐसे ही एक किस्सा याद आ गया....मैं बी.एस.सी. सेकंड ईयर में पढ़ रही थी..हर साल की तरह उस साल भी यूथ फेस्टिवल होने वाले थे...चूंकि मैं पिछले एक साल से शास्त्रीय संगीत सीख रही थी तो सभी के कहने पर मैंने प्रतियोगिता में भाग ले लिया...और चूंकि शास्त्रीय संगीत के जानने वाले ज्यादा नही थे तो मैं ओवर कौन्फिदेंट भी थी अपनी जीत को लेकर....मेरे अलावा केवल एक लड़की और थी भाग लेने वाली..हम दोनों में से एक को ही जीतना था! मैंने राग हमीर की एक बंदिश अच्छे से तैयार कर रखी थी और उसी को २-३ प्रोग्राम में गा भी चुकी थी..ऊपर से लोगों की तारीफ ने सचमुच मेरा दिमाग भी ख़राब कर दिया था...दूसरी तरफ़ रश्मि थी जो अभी तक किसी प्रोग्राम में नही गाई थी!और सबसे बड़ी बात की जो उस प्रतियोगिता की जज थीं...मैडम ताम्बे, वो संगीत की जानी मानी हस्ती थीं और बमुश्किल दो हफ्ते पहले ही किसी सिलसिले में मेरा उनके घर जाना हुआ था तो मैंने उन्हें यही राग गाकर सुनाया था और उन्हें भी अच्छा लगा था...तो मुझे पूरा विश्वास था की जीत तो मेरी ही होनी है!प्रोग्राम शुरू हुआ...मैंने गाना शुरू किया और ये क्या....पहला ही सुर ग़लत लगा!मैंने मैडम की तरहफ और मेरे गुरु जी की तरफ़ देखा ...उनके माथे पर बल आ गए थे! इसके बाद मैंने सुर संभाला और उसके बाद पूरी बंदिश लगभग सही गाई....शायद बाकी लोगों को मेरी इस गलती के एहसास भी नही हो पाया था...इस गलती के बाद भी मुझे यकीन था की जीतूंगी तो मैं ही....फ़िर रश्मि आई...उसने राग बागेश्री की एक बंदिश गाई...और पूरी तरह सुर में ५ मिनिट में अपनी बंदिश ख़त्म कर दी...मैं सोच रही थी की मैंने १५ मिनिट तक गाया है और जितनी कलाकारी सम्भव थी सब कुछ दिखा दी थी इसलिए इंतज़ार कर रही थी विजेता के रूप में अपना नाम पुकारे जाने का....और जैसे ही विजेता के रूप में रश्मि का नाम पुकारा गया..एक बार मुझे अपने कानों पर विश्वास नही हुआ...लेकिन ये सच था रश्मि मंच पर पहुँच चुकी थी..इनाम लेने के लिए!मेरा दिमाग एकदम सातवे आस्मान पर पहुँच गया...रही सही कसर मित्र मंडल ने पूरी कर दी ये कह के की तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है...तुम्हे ही जीतना चाहिए था...मैं ये मानने को तैयार नही थी की रश्मि ने मुझसे अच्छा गाया था..गुस्से में उठकर मैं सीधे घर की और चल दी...रश्मि को बेमन से बधाई दी..ताम्बे मैडम ने मुझे बुलाया मगर मैंने उनकी और देखा तक नही....गुस्से ने साधारण शिष्टाचार भी भुला दिया था!दोस्तों के कहने में आकर अगले दिन अपने कॉलेज के प्रिंसिपल के पास पहुँची...ग़लत जजमेंट की शिकायत करने...वो भी संगीत के बड़े जानकार थे और ताम्बे मैडम की बड़ी इज्ज़त करते थे..उन्होंने साफ मना कर दिया उनके निर्णय के ख़िलाफ़ जाने से..मैं बहुत दिनों तक अपसेट रही इस घटना से...और खासकर ताम्बे मैडम के प्रति कटुता से भर गया मेरा मन...मैं एक बार भी ये स्वीकार करने को तैयार नही थी की मैंने गलती की थी!

आज सोच रही हूँ....रश्मि ने वाकई मुझसे अच्छा गाया था! वक्त के साथ कितना कुछ बदल जाता है जो हमे पता भी नही चलता! आज एक सिपाही से भी माफ़ी मांगते संकोच नही होता...सचमुच बदल गई हूँ मैं!

Wednesday, June 11, 2008

कस्टमर केयर - सचमुच कस्टमर की केयर !

अभी तक रामायण के विभीषण के बारे में सुना ही सुना था...कल साक्षात अनुभव भी कर लिया! और साथ ही वो क्या कहावत है "जिस थाली में खाओ उसी में छेद करो" को भी चरितार्थ होते देख लिया....चलिए आपको भी कल का किस्सा सुनाते हैं!

हुआ यूं की कुछ ही दिन पहले हमने बी.एस.एन.एल का नया मोडेम खरीदा...स्कीम है तेज़ गति का इंटरनेट ५५० /- रुपये महीने में अन लिमिटेड उपयोग!है न आकर्षक स्कीम...हमने भी खरीद लिया...मोडेम +अन्य चार्जेस मिलाकर कुल ३५०० रु. देने पड़े! घर आकर लैपटॉप में लगाया...स्पीड बता रहा था 230 kpbs लेकिन खुलने में करीब आधा घंटा लग गया....पहली बार था तो हमने भी अत्यंत धैर्य दिखाते हुए इस शंका का लाभ दे दिया की नयी जगह है एडजस्ट होने में थोडा टाइम तो लगता है!अब हम ही कहीं नयी जगह जाते हैं तो थोडा टाइम लगता है मन को रमाने में फिर ये तो बेचारा बिन बुद्धि का मोडेम है! खैर दो दिन बीते....२ घंटे बैठे रहे नेट पर किन्तु मात्र ३ ब्लॉग पर टिपण्णी कर पाए!मित्रो , अगर बीच में किसी पोस्ट पर हमारी टिपण्णी न मिली हो तो उसका दोष इसी कमबख्त बी.एस.एन.एल सेवा को जाता है! तीसरे दिन तो खुलने से ही साफ इनकार कर दिया...चौथे दिन भी "can not find server" को ही बांचते रहे! पाँचवे दिन हमारे अन्दर का जागरूक उपभोक्ता बौखला उठा!एक घंटे की मशक्कत के बाद भी जब "website found,waiting for reply" से आगे गाड़ी नहीं बढ़ी तो गुस्से में सीधे कस्टमर केयर का नंबर मिलाया!गुस्से में क्या क्या बोलना है...वो भी पहले ही सोच रखा था और जब तक लाइन कस्टमर केयर अधिकारी को ट्रांसफर हो रही थी..तब तक मन में तीन बार दोहरा भी लिया कहीं उसकी मीठी मीठी बातों में भूल न जाएं! हमारी और कस्टमर केयर अधिकारी की जो बात हुई जैसी की तैसी आपके समक्ष प्रस्तुत है....

नमस्कार...मैं बी.एस.एन.एल. से , आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ.?
हाँ हाँ..नमस्ते.(हांलाकि हमारी स्क्रिप्ट मुताबिक हमें नमस्ते नहीं बोलना था)
जी बताएं..मैं आपके क्या सेवा कर सकता हूँ?
अरे सेवा क्या.....हमने आपका मोडेम लिया है...वो तो काम ही नहीं कर रहा है!
जी ..कौन सा मोडेम?
वो...usb data modem...५५० की स्कीम वाला
माफ़ कीजिए...ऐसी तो कोई स्कीम है ही नहीं हमारी!
अरे वाह..है कैसे नहीं..हमने ली है! वो सफ़ेद रंग का मोडेम..huawei कम्पनी का!(हमने याद दिलाया)
अरे हाँ..याद आ गया..बताइए क्या सेवा करूं आपकी?
स्पीड बहुत स्लो है....ज्यादातर तो खुलता ही नहीं है!
जी...आपने लिया ही क्यों ये मोडेम?
जी...क्या कहा आपने?
मैंने कहा...आपने बी.एस.एन.एल का नेट कनेक्शन लिया ही क्यों?
नहीं लेना चाहिए था क्या?स्कीम तो अच्छी लग रही थी !(अब तक गुस्सा काफूर हो गया था और उसका स्थान कौतुहल ने ले लिया था)
अरे ये तो सब इनके प्रचार के धंधे हैं..आपको किसी प्राइवेट कम्पनी का कनेक्शन लेना चाहिए था!
हाँ...वाकई गलती तो हो गयी...आप जैसा सलाहकार पहले नहीं मिला न!
आपको नहीं पता..बी.एस.एन.एल. की सेवाएं सबसे खराब हैं...(उसने हमें लताड़ सा दिया)
हाँ ..पता तो था(हमने गलती मानी)
अब बताइए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?
दो बातें बताइए?
जी...पूछिए?
क्या मैंने बी.एस.एन.एल. के कस्टमर केयर पर ही कॉल किया है ?
जी हाँ...बिलकुल सही जगह कॉल किया है आपने.
दूसरा प्रश्न यह की क्या इस मोडेम को वापस करवाने में आप हमारी कोई मदद कर सकते हैं...?
माफ़ कीजियेगा...वापस करने की तो कोई स्कीम नहीं है!
इसका मतलब हमारे पैसे डूब गए?
वैसे तो डूब गए लेकिन आप चाहे तो किसी को बेच भी सकती हैं!
मतलब हम किसी और को उल्लू बनायें?
जी..मैं और क्या सेवा कर सकता हूँ आपकी?
जी..धन्यवाद!जानकारी के लिए शुक्रिया!
नमस्कार...आपका दिन शुभ हो!(ऐसा लगा जैसे उसने हमारी हंसी उडाई)

हांलाकि इसके बाद हमने रिसर्च किया तो दो प्रमुख कारण ढूंढ निकाले इसके काम न करने के!पहला तो हमारे घर में बी.एस.एन.एल. के सिग्नल ही ठीक तरह से नहीं आते हैं,मोबाइल पर बात करना हो तो चाहे कद्कदाती सर्दी हो या चिलचिलाती धुप, घर के बाहर ही निकालना पड़ता है!( अब ये बात अलग है की हमारा घर शहर के बीचों बीच है! ) दूसरा कारण ये कि हमारा लैपटॉप भी दो साल पुराना हो गया है! हमारी बहन के नए लैपटॉप पर ये कमबख्त इंटरनेट भी सही काम करता है!हाल फिलहाल तो समस्या का ये समाधान निकाला है कि हमने अपनी बहन से अपना लैपटॉप बदल लिया है! उसके पास टाटा indicom का कनेक्शन है जो हर जगह काम करता है!

खैर हमारी समस्या का समाधान तो हो गया पर हमारे मन में उस कस्टमर केयर अधिकारी के प्रति श्रद्धा तो उत्पन्न हो ही गयी! आप ही बताइए कहाँ मिलते हैं आज के ज़माने में जनता का भला चाहने वाले शासकीय सेवक!
सभी शासकीय एवं निजी कम्पनियों के कस्टमर केयर अधिकारियों को अवलोकनार्थ एवं आवश्यक कार्यवाही हेतु!

Sunday, June 8, 2008

वो खामोश बैठी लड़की

अभी अनुराग जी की पोस्ट पढी...लास्ट की लाइन्स "दर्द है कि कम्बख्त ख़त्म होता नही..........रूह को चैन मिलता नही" पढ़कर बहुत कुछ याद आ गया! कभी कभी कुछ लम्हे जेहन पर ऐसे चस्पा हो जाते हैं कि गाहे बगाहे याद आ जाते हैं! आज ही किसी अखबार में एक छोटी बच्ची के बलात्कार कि खबर पढी,मन कसैला हो गया!और अचानक वो याद आ गयी...

वो चौदह साल की ही तो थी जब इस दर्दनाक हादसे की शिकार हुई! सात साल पहले एक देहात के थाने में थाना प्रभारी की ट्रेनिंग ले रही थी! गंभीर अपराध पलट रही थी..नज़र पड़ी , स्टाफ ने बताया पास के ही एक छोटे से गाँव की लड़की है उसके २० साल के पडोसी लड़के ने रेप किया! लड़का अरेस्ट हुआ? मैंने पूछा ! मैं आगे का पेज पलटने लगी तभी हवलदार की बात सुन के बुरी तरह चौंक गयी..." साहब..वो लड़की अब गर्भवती है" !कुछ बहुत ही अजीब सी फीलिंग उठी मन में..रहा नहीं गया! मुझे ले चलोगे उसके गाँव? क्यों नहीं...अभी चलिए!

लगभग ५ किलो मीटर दूर था उसका गाँव! पहुंची..लड़की के घर पहुंचे! माँ बाहर ही बैठी थी! मैंने नज़र घुमाई..बमुश्किल २०-२५ टपरे बने हुए थे !सारे के सारे अनपढ़ और हद से ज्यादा गरीब! माँ ने बताया कि सातवां महीना चल रहा है! इतने में वो भी बाहर निकल कर आयी! सांवली, दुबली पतली सी लड़की! उसकी माँ ने बैठने का इशारा किया..चुपचाप जमीन पर बैठ गयी! मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या बात करूं उससे!" इससे तो पैदा ही नहीं होती तो अच्छा था.." माँ लड़की को देखते हुए बोली! वो बिलकुल चुपचाप थी..मैंने माँ को डांटा" इसमें इसकी क्या गलती है...उसे क्यों कोसती हो" इसे किसी डॉक्टर को दिखाया? माँ ने क्रतग्य भाव से मेरे साथ आये हवलदार कि ओर देखकर बोला " इन हैड साब ने बहुत मदद की हमारी...डॉक्टर के पास ले जाना, दवाई दिलवाना सब करवा देते हैं! बड़ा अच्छा लगा सुनकर!इसके पहले तक मेरे मन में पुलिस कि छवि नकारात्मक ही ज्यादा थी! खैर...मिलकर वापस आ गयी और दूसरे कामों में लग गयी!

दो महीने बाद उसे अस्पताल में भरती कराया गया! लड़की का माँ के अलावा कोई नहीं था...लेकिन थाने के सारे स्टाफ की सुहानुभूति थी..दौड़ दौड़कर दवाई लाना..डॉक्टर को बुलाना..सब मेरे सिपाहियों ने ही किया! रात को उसने एक लड़की को जन्म दिया! हम सब पहुंचे उसे देखने...बड़ी खूबसूरत प्यारी सी बच्ची थी! घर आकर सोयी...सुबह चार बजे फोन की घंटी से नींद खुली...." उसने अपनी पैदा हुई बच्ची का गला घोंट कर मार दिया" कानों पर विश्वास नहीं हुआ...भागकर अस्पताल पहुंची! सचमुच उसने अपनी कुछ घंटों की बेटी का गला घोंट दिया था...नवजात बच्ची निर्जीव पड़ी हुई थी!वो अब भी चुपचाप अपने पलंग पर बैठी थी! उसकी माँ उसे गालियाँ देती हुई रोये जा रही थी! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था...क्या करूं? क्यों किया तुमने ऐसा? मैंने उससे पूछा ! " मैं क्या करती इसका...?" पहली बार वो कुछ बोली ! क्या करती मतलब...?मैं बुरी तरह खीजकर बोली!
"अम्मा ही तो जब से कह रही है...तेरी लड़की है अब तू ही संभालना, आप बताओ मैं कैसे सम्भालू इसे...मुझे नहीं चाहिए" उसकी आँखों न आंसू हैं न चेहरे पर कोई पश्चाताप! डिलेवरी के बाद उसकी हालत भी कोई ठीक नहीं थी..ऊपर से दिसम्बर की ठंड! उसके ऊपर अपनी ही बेटी के कत्ल का मुकदमा कायम हो गया! अगले घंटे में वो अस्पताल से निकलकर थाने के हवालात में आ गयी! कोई प्रतिरोध नहीं...एकदम खामोश बैठ गयी फिर से!पता नहीं क्या चल रहा था उसके मन में....उस बेचारी बिना पढी लड़की को ये भी बोध नहीं था की उसने कोई अपराध कर दिया है! उसे अभी तक ये समझ नहीं आ रहा था...की आखिर उससे ऐसी क्या गलती हो गयी...उसकी लड़की, उसे नहीं चाहिए उसने मार दी! मैं उसे कानून नहीं समझा सकती थी! हवालात में बैठी बुरी तरह से कांप रही थी....इस वक्त थाने के स्टाफ ने जो किया मेरे मन में सभी के लिए श्रद्धा भर गयी...मैंने उसके लिए स्वेटर मंगाया...एक सिपाही अपने घर से वो लड्डू बनवा लाया जो डिलेवरी के बाद दिए जाते हैं...दूसरे सिपाही की पत्नी उसके साथ बैठी रही..जब तक वो सो नहीं गयी! अगले २४ घंटे वो थाने पर रही...उसके बाद कोर्ट पेश की गयी ..जहाँ से उसे सुधार गृह भेज दिया गया!

कत्ल का मुकदमा चला उस पर...शायद उम्र को देखते हुए सज़ा में कुछ कमी हो जाये मगर उसे बरी कोई नहीं कर सकता!पता नहीं..केस ख़त्म हो गया या अब तक चल रहा है?पता नहीं उसे कितने साल की सजा हुई? अब तक तो वो बालिग हो गयी होगी और सुधार गृह से निकलकर जेल पहुँच गयी होगी! हत्यारी माँ का लेबल भी उस पर लग गया होगा!

मैं अक्सर सोचती हूँ...कानून की नज़र में वो गुनाहगार है पर क्या सचमुच वो दोषी है?

जब सोचती हूँ उसके बारे में तो मुझे " gods must be crazy" film का वो सीन याद आ जाता है जिसमे कालाहारी का एक बुश्मैन हिरन मार देता है...जब उसे कोर्ट ले जाया जाता है...तो उसे सजा मिलती है लेकिन वह अंत तक नहीं समझ पाता की उसकी गलती क्या है? जिस परिवेश में वह रहता था वहा कोई कानून नहीं था! शायद उस लड़की के लिए भी बिल्ली मारना और इंसान को मारना एक जैसा ही रहा होगा! आज फिर से वो खामोश बैठी लड़की बहुत याद आ रही है!

Thursday, June 5, 2008

कुछ कच्चे पक्के से लम्हे



कुछ कच्चे पक्के से लम्हे
आज फिर वक्त की डाल से तोड़े
धोकर पोंछकर रख दिए हैं एक डलिया में
तुम्हारी नज़र कर रही हूँ....

चख के देख लेना
मीठे लम्हे तुम रख लेना
कड़वे मुझे वापस कर देना ,और
हो सके तो किसी एक को
अपने दांतों से आधा काट लेना
आधा मुझे दे देना
मिल बाँट कर खा लेंगे

जैसे पहले सेब खाया करते थे....

Monday, June 2, 2008

कैसी कैसी उत्तर पुस्तिकाएं...


आज यूं ही भाई बहनों के साथ बैठे बैठे गपिया रहे थे..कई मजेदार टॉपिक निकले उनमे से एक था जब परीक्षा में प्रश्न का उत्तर नहीं आता हो और कॉपी कोरी नहीं छोड़नी हो तो क्या क्या लिखा जा सकता है!मेरे पास भी अथाह तो नहीं पर थोडा बहुत अनुभव है पढाने का..एम. ए. करते करते एक स्कूल में एक साल पढाया...एम. ए करने के बाद कॉलेज में कुछ महीने संविदा पर पढाया और अब पढाती तो नहीं पर कॉपी जांचने का महा बोरिंग काम जरूर करना पड़ता है ..जब हर साल कॉन्स्टेबल भर्ती होती है और उसमे उत्तर पुस्तिकाएं चैक करनी पड़ती हैं! ये मजेदार उत्तर उस बोरिंग कार्य को रोचक बनाने में सहायक होते हैं...इस कथा में मैं बचपन से लेकर अभी तक के उन प्रश्न उत्तरों को शामिल कर रही हूँ जिन्हें मैंने स्वयम देखा है...सुना सुनाया कुछ भी नहीं है...

प्रश्न-१ ईसा मसीह ने अपनी अन्तिम घड़ियों में क्या प्रार्थना की?
उत्तर- ईसा मसीह ने प्रार्थना की कि मेरी सारी घडियाँ मेरे शिष्यों में बाँट दी जाएं और मेरी पसंद की घडी मेरे साथ दफना दी जाए!

प्रश्न-२ दांतों तले उंगली दबाने का अर्थ बताते हुए वाक्य में प्रयोग करो!
उत्तर- "इतना कठिन पेपर देखकर हमने दांतों तले ऊँगली दबा ली l

प्रश्न-३ जंतुओं और पौधों में पांच अंतर बताइये?
उत्तर- (बीच में लाइन खींचकर) पौधे हरे होते हैं, जंतु रंग बिरंगे होते हैं!
पौधों में रक्त ऊपर से नीचे बहता है, जंतुओं में रक्त नीचे से ऊपर बहता है!
पौधे हुआ हुआ नहीं करते, जंतु हुआ हुआ करते हैं! (हुआ हुआ अर्थात उनकी आवाज़,शायद उसके गाँव के आसपास भेडिये बोलते रहे होंगे )पौधे चंचल नहीं होते, जंतु चंचल होते हैं!
पांचवा भी याद किया था...भूल गया!

प्रश्न-४ कारगिल समस्या क्या है?
उत्तर- कारगिल में बहुत ठंड पड़ती है! सिपाहियों को टेंट में रहना पड़ता है और शौच के लिए बाहर लोटा लेकर जाना पड़ता है ठंड के कारण पानी जम जाता है और सिपाहियों को समस्या होती है!

प्रश्न-५ पानीपत का द्वितीय युद्ध पर निबंध लिखो?
पानीपत का द्वितीय युद्ध अकबर और हेमू के बीच हुआ था..अकबर के पास तलवार और हेमू के पास कटार थी!अकबर ने तलवार लहराई, हेमू ने कटार घुमाई!दोनों आपस में टकराई...खन्न की आवाज़ हुई!खन खना खन ...की आवाजें मैदान में गूंजने लगीं! कभी अकबर आगे तो कभी हेमू आगे!थोडी थोडी देर में दोनों सुस्ता कर पानी वगेरह पी लेते थे!फिर लड़ाई मार काट शुरू हो जाती थी!घोडे पे चढ़ चढ़ के लड़ते थे दोनों......इसी प्रकार से पूरे तीन पेज का उत्तर बना!

प्रश्न-६ मलेरिया पर टीप लिखो?
उत्तर- मलेरिया वलेरिया कुछ नहीं होता ,ये सब मन का वहम है! ( डॉकटर्स कृपया ध्यान से पढें इसे :)

प्रश्न-८ देश से गरीबी हटाने के उपाय बताइये?
उत्तर- हर गरीब को अमेरिका भेज कर वहाँ के हर आदमी को उन्हें रखने का कानून बनाना चाहिए!अमेरिका अमीर देश है उनका एक नागरिक अगर एक गरीब को पाल लेगा तो हमारे देश से गरीबी कम हो जायेगी! ( क्या बात कही...एक साथ गरीबी और जन संख्या दोनों कम)
ques-9 write an essay on cow?
ans- 1) cow is our mother.
2- it has no khaki bag.
3-it has no cycle.
4-it has eat ghaas.( बेचारे बच्चे ने याद तो पोस्टमैन का किया था..ये परीक्षा लेने वाले सच्ची में बहुत बुरे होते हैं)
प्रश्न-१० proton पर टीप लिखिए?
उत्तर- proton की खोज मोसले ने की थी! यह दूध में पाया जाता है!इसे पीने से ताकत मिलती है! हड्डी मजबूत होती है! इसके साथ neutron और electron भी पाए जाते हैं!

ये तो हैं कुछ अजीबो गरीब उत्तरों के नमूने इसके अलावा कुछ पैदाइशी सिफारिशी होते हैं...कैसी कैसी सिफारिशें लिखी होती हैं कॉपियों पर ...एक नज़र-
१- मैं बहुत गरीब हूँ...माँ की मौत हो गयी इसलिए पढ़ नहीं पायी!कृपया इस बार पास कर दीजिये!
२- मेरे ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी है!पास नहीं हुआ तो नौकरी नहीं मिलेगी! पास कर दो!
३- आपको भगवान् की कसम है..पास कर दो न!
४- मेरा पता और टेलीफोन नंबर नीचे लिखा है...जो कोई मुझे भरती कर लेगा उसे ५०,००० रुपये का इनाम दूंगा!
५- १०० का नोट नत्थी कर रहा हूँ...कृपया पास कर दें!

आप सभी ने भी अवश्य ऐसी रोचक कॉपियाँ देखी होंगी या लिखी भी होंगी!मैंने भी लिखी हैं...वो अगली बार के लिए छोड़ देती हूँ!आप भी जोड़ दीजिये इसमें अपना अनुभव...इसी ८ तारीख को मुझे फिर से कॉपी जांचने का सुअवसर प्राप्त हो रहा है!शेष अगली किसी पोस्ट में........