Friday, May 30, 2008

एक उलझन सी है

आज सुबह शताब्दी से ग्वालियर से भोपाल लौट रही थी!कल सुबह अचानक जाना पड़ा ग्वालियर...गुर्जरों ने ग्वालियर बंद करवाया था कल तो उसी सिलसिले में गयी थी!आज वापस आई...आम तौर पर शताब्दी से भोपाल तक का सफर साड़े चार घंटे का होता है..और पुराने फिल्मी गीतों के instrumental म्यूजिक के साथ कोई एक किताब पढ़ते हुए सफर आसानी से कट जाता है! आज भी चेतन भगत की 'the three mistakes of my life' मेरे हाथ में थी और खासी interesting भी लग रही थी पर मन बार बार भटक कर बलवीर पर जा रहा था...

बलवीर कांस्टेबल है ग्वालियर में और मेरे ग्वालियर के कार्यकाल के दौरान मेरे ऑफिस में मेरे रीडर का सहायक था..तीन साल वो मेरे साथ था और इतना होशियार और सज्जन की इन तीन सालों में मुझे एक भी बार उससे ऊंची आवाज़ में बात करने की ज़रूरत नहीं पड़ी! हमेशा सभी के साथ ऐसा होता है की जिस जगह काम करते हैं वहाँ पर कुछ लोगों से आत्मीय संबंध बन जाते है और वे लोग घर के सदस्य की तरह हो जाते हैं बलवीर भी उन्ही में से एक है..उसके साथ ही एक और हवलदार जो मेरा बड़ा विश्वसनीय रहा देवसिंह ..वो भी मिलने रेस्ट हाउस आ गया!मुझे भी अच्छा लगा मिलकर...बस यूं ही मैंने दोनों से उनकी खैरियत पूछी बलवीर आम तौर पर शांत ही रहता था...एक मुस्कान के साथ अपने बारे में बता रहा था!सब कुछ ठीक साउंड कर रहा था!तभी देवसिंह ने बताया 'साहब, बलवीर बहुत बीमार रहता है अभी १० दिन अस्पताल में एडमिट रहा'! मैंने बलवीर की तरफ देखा..आधे घंटे से हम लोग बात कर रहे थे पर उसने एक शब्द नहीं बोला! मैंने पूछा ' क्या हो गया बलवीर?' उसने बताया की उसको हार्ट प्रोब्लम है और बी..पी. भी बढ़ गया है!और कोलेस्टेरोल भी काफी ज्यादा है!ओह..ज्यादातर पुलिस वालों को ये प्रोब्लम होती है...काम की अधिकता,तनाव और अनियमित खान पान के कारण! बलवीर की तो उम्र भी ज्यादा नहीं है!यही कोई ४० के आसपास!मैं ज्यादा तो नहीं जानती...पर चूंकि \कोलेस्टेरोल मेरा भी हाई रहता है इसलिए डॉक्टर से जो अपने लिए सलाह सुनी थीं वही बलवीर को बताने लगी ' घी लगी रोटी मत खाओ, सलाद ज्यादा लो...सुबह सुबह ब्रिस्क वॉक करो..वगेरह वगेरह! मैंने लगे हाथों कुछ देसी इलाज भी बता दिए जो मैं आजमा चुकी थी! मैंने सुबह घूमने पर ज्यादा जोर दिया...मैंने अपनी बात ख़तम कर बलवीर की ओर देखा...ये क्या... उसके चेहरे पर एक दर्द छलक आया और आँखों में आंसू आने से जैसे तैसे रोक रहा था!मैंने पूछा 'क्या हुआ बलवीर?' " साहब, मेरी पत्नी मानसिक रोगी है रात को दवा लेकर सोती है तो सुबह ८ बजे का पहले नहीं उठती...मैं सुबह ५ बजे से उठकर पानी भरना, बच्चों को स्कूल भेजना, उनका नाश्ता बनाना , घर का झाडू पोंछा करना ,खाना बनाना ये सब करके १० बजे ऑफिस पहुँचता हूँ..एडिशनल एस.पी. के ऑफिस का सारा काम अकेले देख रहा हूँ...और वहाँ भी दिन भर डांट ही खाता हूँ..कहाँ से वक्त लाऊं सुबह घूमने के लिए?' इतना कहकर उसने मुंह फेर लिया..मैं समझ गयी वो मेरे सामने रोना नहीं चाहता है! दो मिनट हम सब खामोश रहे!' बलवीर..तुम किसी कूल जगह ट्रांसफर क्यों नहीं कर लेते?' मैंने पूछा!" बहुत कोशिश कर ली लेकिन..." इसके आगे कुछ न बोल सका..पर मैं समझ गयी..तमाम कोशिशों के बाद भी मनचाही जगह ट्रांसफर होना मुश्किल ही है..खासकर जिसकी कोई जुगाड़ न हो!बलवीर फिर ज्यादा देर नहीं ठहरा..चला गया!

वो तो चला गया लेकिन मन अब तक परेशान है...कई बार मैं खीज जाती हूँ ज्यादा काम होता है या कभी बॉस कुछ कह दे तो...बेचारा बलवीर कितना खीजता होगा..दिन भर डांट खाकर और वो तो किसी से कुछ कह भी नहीं पाता...घर पर अपना पत्नी से भी नहीं बाँट सकता अपना परेशानी! पता नहीं ऐसे कितने और कर्मचारी होंगे जो इतने तनाव में नौकरी करते होंगे...और कोई पूछने वाला भी नहीं है!'तुमने अच्छी वर्दी नहीं पहनी, काम में मक्कारी करते हो, काम नहीं करना तो नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते...किसी और को नौकरी मिले' ये कुछ शब्द हैं जो अमूमन हर सिपाही ,हवलदार रोज़ सुनता है!हमारे पास वर्दी के तीन सेट होते हैं, हम गाडी में चलते हैं, एक दाग लग जाए तो तुरंत धुलने चली जाती है...मगर एक सिपाही जो दिनभर मोटरसाइकल या साइकल या टैम्पो में दौड़ भाग कर रहा है...कहाँ तक वर्दी धुल्वाये.. आज सोच रही थी! डांटना कितना आसान होता है...लेकिन कभी अपने सिपाहियों को बुलाकर उनका दुखदर्द पूछने का टाइम नहीं है किसी के पास!

पता नहीं क्यों पोस्ट कर रही हूँ मैं ये..पता नहीं मैं बलवीर के लिए क्या कर पाउंगी! सोचती हूँ किसी अधिकारी से बात कर लूं उसके ट्रांसफर के लिए...! और हाँ...कल ही अपने रीडर से भी थोडी देर बात करुँगी!मुझे तो ये भी नहीं पता की उसके कितने बच्चे हैं?

Wednesday, May 28, 2008


एक उदास शाम
मैं बैठा समंदर किनारे
अपनी भीगी पलकें लिए
उफक पर डूबता हुआ सूरज
जैसे मेरी खुशियाँ भी
साथ लेकर डूब रहा हो

घोर निराशा,घोर अन्धकार
मैं कर रहा था सिर्फ
अपनी मौत का इंतज़ार
समंदर की लहरें
मानो हँस रहीं थीं
मेरे दर्द पर

यकीन था मुझे कि
खुशियाँ मुंह मोड़ चुकी हैं मुझसे
और रौशनी बिछड़ चुकी है

तभी एक मखमली स्पर्श ने
चौंकाया मुझे
एक नन्हा बच्चा आकर
लटक गया मुझसे
मैं भूल गया अपने ग़म
कुछ पल को

हमने रेत का घर बनाया
सीप इकट्ठी कीं
और जी भर के भीगे
उन मचलती लहरों में

और उसी पल उफक पर डूबते हुए
सूरज ने मुझसे कहा

चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...

Friday, May 23, 2008

जय भोलास्वामी की ...


कल भोला प्रसाद को उसके माँ बाप ने फिर से जी भर के कोसा! " निकम्मा कही का....काम का न काज का ढाई मन अनाज का ,दिन भर पड़े पड़े चरता रहता है..कब कोई काम करना शुरू करेगा" भोला ने अपने दोनों कानों को आपस में जोड़ते हुए किसी विधि से एक पाइप फिट किया था जिससे ये सारे प्रवचन आसानी से दुसरे कान से बाहर निकलने में सक्षम थे! भोला कल भी पाइप की मदद से प्रवचनों को गतिमान कर रहा था..मगर बात ज्यादा बिगड़ गयी! बाप को भोला की बेशर्मी पर ज्यादा गुस्सा आ गया और लात मारकर घर से बाहर निकाल दिया ,भोला ने अन्दर घुसने की कोशिश की तो दो लातें और टिकायीं ,साथ में चेतावनी भी दी की अब अगर कुछ कमाना शुरू नहीं किया तो घर में न घुसे! भोला ने माँ की ओर बेचारगी से देखा मगर माँ भी इस बार बापू की साइड थी! भोला को गुस्सा आ गया! उसने भी दरवाजे के बाहर से ही बाप को धिक्कारा कि वे एक पिता का फ़र्ज़ निभाने में नाकाम रहे हैं...और उसी पल उसका आत्म सम्मान जाग गया! भोला का आत्मसम्मान के रूप में कुम्भकर्ण ने पुनर्जन्म लिया था वो भी थोड़े और एडवांस वर्ज़न के रूप में! कुछ मिनिटों को ही जागता था !इन्ही कुछ मिनिटों में भोला ने निश्चय किया कि अब वो गाँव में नहीं रहेगा और तभी लौटेगा जब कुछ कमाने लगेगा! भोला चल दिया शहर कि ओर!

भोला शहर पहुंचा!जैसे ही भूख लगी वैसे ही आत्मसम्मान के सोने का वक्त हो गया! भोला का मन किया कि वापस गाँव लौट जाए मगर इतना चलने कि ताकत नहीं थी! कमबख्त आत्मसम्मान गलत टाइम पे जगा...घर से चलते समय कोई सामान भी न रख सका! कोई काम करने की ताकत भी न थी बदन में और न ही आदत थी! एक मंदिर के सामने बैठे बच्चे को भीख मांगते देखा तो चेहरा खिल गया! भोला भी झट से अपना रूमाल निकाल भीख मांगने बैठ गया! आत्मसम्मान खर्राटे भर रहा था! दो घंटे बैठा रहा पर हट्टे कट्टे मुस्टंडे भोला को एक चवन्नी तक नहीं मिली ऊपर से चार बातें और सुनने को मिल गयीं! भोला सोच रहा था" भले ही चार लातें और मार लेते मगर घर से तो न निकालते" ऐसे ही बैठे बैठे शाम हो गयी...तभी एक उचक्का सा दिखने वाला आदमी भोला के पास आया और बोला" भाई..मैं तुझे सुबह से यहाँ बैठे देख रहा हूँ,क्या समस्या है तुझे?"
भोला ने आपबीती कह सुनाई! उचक्का उचक कर भोला के पास आया और कंधे पर हाथ रखकर बोला" मेरे पास एक जबरदस्त आइडिया है...अगर मेरा कहा मानोगे तो पैसों की बारिश में नहाओगे"
भोला ने संशय से उचक्के को देखा और मुंह बिचका कर बोला " तुम्हे पैसों की बारिश में नहाने से फोड़े निकलते हैं क्या? खुद क्यों नहीं नहा लेते?
उचक्का निराश भाव से बोला" मैं तो खुद ही नहाता लेकिन बरसों से चोरी चकारी कर कर के अब साली शकल ही उचक्की सी हो गयी है!मेरे काम के लिए शरीफ दिखने वाला आदमी चाहिए"
भोला भी राज़ी हो गया" बताओ क्या करना है? बस कहीं फसवा मत देना !
उचक्का बस्ती के बीचों बीच एक पीपल के पेड़ के नीचे भोला को ले गया और एक बेढंगा सा पत्थर पेड़ के नीचे रख दिया! भोला को कुछ समझ नहीं आया" ये क्या कर रहे हो"?
बस तुम देखते जाओ,अच्छा ये बताओ कुछ पैसे हैं तुम्हारे पास ?
अगर पैसे होते तो कुछ खा नहीं लेता" भोला चिढ़कर बोला!
ठीक है ठीक है...मैं ही कुछ इंतजाम करता हूँ! उचक्का फर्राटे भरता गया और चंद मिनटों में ही केसरिया रंग और एक लाल कपडा खरीद कर ले आया! भोला हैरत से मुंह फाड़े उसे देख रहा था!उचक्के ने केसरिया रंग से पत्थर को पोत दिया! अब पत्थर भगवान बन गया था! और लाल कपडे को तिकोना काटकर एक डंडे से बांधकर झंडे की तरह पेड़ पर टांग दिया! बचा लाल कपडा भोला को दिया और बोला "चल...अपना कुरता उतार कर ये कपडा लपेट ले! भोला इतना भी भोला नहीं था ,अब तक उसके दिमाग की बत्ती जल चुकी थी! चुपचाप कुरता उतार कर कपडा लपेट लिया! उचक्के ने भोला के माथे पर एक केसरिया तिलक भी लगा दिया! अब भोला पक्का पंडित बन गया था!उचक्के ने भोला को आदेश दिया कि भगवान के पास बैठकर पूजा करना शुरू कर दे! भोला बोला" मुझे तो एक मन्त्र भी नहीं आता, पूजा क्या ख़ाक करूंगा!
वहाँ बैठ कर आँख बंद करके हाथ तो जोड़ सकता है?
हाँ...ये कर लूंगा!
भोला आँख बंद करके चाट पकोड़ी के सपने देखने लगा! बीच बीच में आँख खोलकर देख लेता..कही उचक्का उसका कुरता लेकर तो नहीं भाग गया! आँखें बंद किये किये ऊंघनी सी आ गयी ,तभी उसकी नींद खुली अपने पैरों पर किसी के स्पर्श से!
ये भोला स्वामी हैं...इन्हें स्वप्न में हनुमान जी ने दर्शन दिए और यहाँ अपनी प्रतिष्ठा कराने का आदेश दिया!" उसके कानो में उचक्के की खिरखिरी सी आवाज़ पड़ी! भोला स्वामी...उसकी हंसी छूटने को हुई,पर मौके की नजाकत को देखते हुए कंट्रोल कर गया! लोग उसके पैर छू रहे थे...थोडी देर में ५-६ नारियल, २-३ प्रकार की मिठाई और पचास-साठ रुपये इकट्ठे हो गए! भीड़ छांटते ही भोला ने उचक्के के चरण पकड़ लिए! "अबे..फोकट में नहीं कर रहा हूँ...आधी कमाई लूंगा और कपडे और रंग के पैसे भी काट लूंगा!
सब मंजूर है भाई!"
अगले कुछ दिनों में भोला स्वामी के चर्चे पूरी बस्ती में हो गए! भोला की अज्ञानता पर पर्दा डालने के लिए उचक्के ने भोला को मौनी बाबा के नाम से फेमस कर दिया! भोला को ड्यूटी अवर्स में चुप रहने में बड़ी तकलीफ होती मगर बोलने का खतरा वह मोल नहीं लेना चाहता था...अकेले में खूब अल्ल गल्ल बोलता! सपने में भी बड़बड़ाने लग गया था!

कुछ ही दिनों में भोला स्वामी प्रसिद्ध हो गए और उचक्का उनका असिस्टैंट और मंदिर का मैनेजर बन गया!एक व्यापारी ने मंदिर के आसपास चबूतरा बनवा दिया,दूसरे ने बोर्ड लगवा दिया "इछापूरण हनुमान" ,तीसरे ने एक टेप रिकॉर्डर और हनुमान चालीसा की कैसेट लाकर दे दीं और चौथे ने वहाँ एक दान पेटी रखवा दी!

भोला और उचक्के का व्यापार अच्छा चल निकला....एक बार एक रईस अपनी मनोकामना लेकर दर्शन को आया और भोला की किस्मत अच्छी थी की उस रईस की मनोकामना पूर्ण हो गयी...खुश होकर उसने पक्का मंदिर बनवा दिया, संगमरमर के फर्श वाला! भोला और उचक्के के लिए मंदिर के पीछे ही एक पक्का कमरा बन गया! अब हर सुबह मंदिर में हनुमान चालीसा चलता और मौनी बाबा भोलास्वामी आँख बंद करके भगवान् के सामने बैठ जाते...बीच बीच में आँख खोलकर सुन्दर कन्याओं और चढाये गए प्रसाद को भी देखते रहते!

मंदिर के आसपास फूलवाले, प्रसाद वाले और बाकी मंदिर का सामान बेचने वाले भी ठेला लगा कर बैठ गए! आधी रोड पर मंदिर का कब्जा हो गया ,बाकी की आधी रोड जनता के लिए छोड़ दी गयी! उन्ही दिनों शहर में नया नगर निगम कमिश्नर आया...आते ही अतिक्रमण हटाओ मुहिम चलाई! सबसे पहला टार्गेट हनुमान जी ही बने..जैसे ही भोलास्वामी के पास नोटिस आया ,नोटिस को मंदिर के बाहर दीवार पर चस्पा कर दिया उचक्के ने..भक्तों ने देखा तो बवाल मचाया..समस्त हिन्दू संगठन इकट्ठे हो गए...कमिश्नर के पुतले फूंके गए! मंत्री जी ने देखा तो कमिश्नर को बुलाकर डांट पिलाई और लगे हाथों ट्रांसफर भी कर दिया!

नया कमिश्नर आ गया, मंत्री जी की गुड बुक वाला ! आते ही सबसे पहले हनुमान जी के दर्शन कर भोला स्वामी का आशीर्वाद लिया और मनोकामना की कि यहाँ रहकर तिजोरी फले फूले! सब खुश...जनता, भोला,उचक्का..मंत्री जी और नया कमिश्नर! अतिक्रमण का क्या है....उसके लिए तो गरीबों की बस्तियां और झुग्गियां हैं ही!

भोला का पेट चुप रह रह के अफरा गया था और उसे इतने दिनों में हनुमान चालीसा भी रट गयी थी अब मौन तोड़ने का समय आ गया था ...उसने उचक्के को अपनी व्यथा बताई...भगवान् उचक्के जैसा दोस्त सबको दे! उचक्के ने अगले ही दिन जनता को बता दिया कि हनुमान जी ने स्वप्न में स्वामी जी को मौन समाप्त करने का आदेश दिया है ,बड़े धूमधाम से भोला का मौन समाप्ति उत्सव मनाया गया! मौन टूटते ही भोला ने सबसे पहले अपनी कौए जैसी आवाज़ में हनुमान चालीसा का पाठ किया !

और हाँ चलते चलते एक बात और....अभी पता चला है कि भोला के माता पिता ने उसे माफ़ कर दिया है और भोला के पास रहने आ रहे हैं !भोला ने उन्हें लेने के लिए अपनी कार भेज दी है..

.जय बजरंग बली की..........

Tuesday, May 20, 2008

बेखयाली के आलम में लिखी कुछ लाइनें....

उमस भरी तपती दोपहरी में
खाली बैठे बैठे ,सोचा...
एक आध नज्म ही लिख दूं
मगर ख़याल कहीं सुस्ता रहे थे
एहसास भी अलसाये से पड़े थे
जेहन के किसी कोने मे
बस, पसीना ही पोंछती रही
कागज़ कोरा ही रहा

ओह...बिजली आ गयी
ए.सी. भी चल गया
नज्म पूरी हो गयी

मुए ख्यालों को भी
ए.सी. और कूलर चाहिए
आरामतलब कहीं के....

Friday, May 16, 2008

बेशरम की संटी


आज शाम को थाने में बैठी थी....तभी वहाँ एक चोर को पकड़ कर लाया गया! पेशेवर चोर था और चोरी का काफी सामान भी उसके पास मिला खैर मैं उसे टैकल करने बैठी...वो काहे को कुछ बताने चला !मैंने एक डंडा उठाया और उसके हथेली में मारा लेकिन उसने झट से हट पीछे कर लिया...मेरा वार खाली गया! अचानक मेरी हंसी छूट गयी....उसका हाथ खींचना और मेरे डंडे का वार खाली जाना अचानक मुझे अपने प्राइमरी स्कूल में खींच ले गया!

मैं और मेरी छोटी बहन मल्लिका सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ते थे! स्कूल में सहपाठियों को भैया बहन पुकारा जाता, अध्यापकों को आचार्य जी बुलाते! जिसका अपभ्रंश कर हब सभी अचार जी बुलाते! हमारे स्कूल के ठीक पीछे एक बड़ा सा नाला हुआ करता था और उसके किनारे किनारे फैली बेशरम की झाडियाँ स्कूल की दीवार को ढकती थीं! बेशरम की संटी हमारी सबसे बड़ी दुश्मन थीं और आचार्यजियों के आकर्षण का केन्द्र! हर क्लास में चॉक डसटर के साथ ही एक हरी संटी भी रखी रहती एक आले में! अगर संटी सूख जाए तो मार खाने में थोडा अच्छा लगता था, कम असर होता था पर हरी संटी ऐसी फनफनाती पड़ती कि तबियत भी हरी हो जाती!

ऐसा कोई माई का लाल नहीं था क्लास में जिसने वो संटियाँ नहीं खाई हों! और संटी खाने का लगभग हर रोज़ एक सा तरीका होता! आचार्य जी प्रश्न पूछते खडा करके...हाथ में संटी फन फनाती रहती! उसे लहराते देखके याद कर कराया भूल जाते!
होमवर्क नहीं किया आज भी, चलो हाथ आगे करो"
इस बार छोड़ दो आचार्य जी कल पक्का पूरा सुना दूंगा!" बच्चे रिरियाते से बोलते!
नहीं...हाथ आगे करो जल्दी" आचार्य जी को भी संटी फटकारने में बड़ा मज़ा आता! कई बार तो मुझे लगता कि शायद संटी मारने के लिए ही आचार्य जी ने इस स्कूल में नौकरी की है!
हाथ आगे आता, रुक रुक कर आधा खुलता ,संटी पड़ती इसके पहले ही पीछे अपने आप खिंच जाता!
साँय की आवाज़ गूँज जाती...सब बच्चे समझ जाते ..संटी हवा में पड़ के रह गयी! जब हाथ में पड़ती तो सटाक के आवाज़ आती!सब मुंह छुपा के हँसते! जब संटी पड़ती ,आँखें अपने आप जोर से मिंच जातीं चेहरा थोडा सा दायें या बाएँ घूम जाता! लेकिन फिर भी दिमाग ऐसा सही जजमेंट करता ..जैसे ही संटी हथेली के पास आती हाथ अपने आप झटके से पीछे हो जाता!आचार्य जी उस समय बौखला जाते और अगली संटी पूरा जोर लगा के मारते!
आचार्य जी सही कह रहे हैं...पूरा याद किया था ,जाने कैसे भूल गए!
बेटा...वोही याद कराने के लिए तो संटी पड़ रही है!' आचार्य जी सिर हिला हिला के कहते!
और हद तो तब होजाती जब जिस को संटी पड़नी हो उसी को तोड़ कर लाने के लिए कहा जाता गोया अपनी कब्र अपने ही हाथ से खुदवाई जाए! जिसको पड़ती वो एक संटी खाने के बाद पीछे पैंट से हाथ मलता...जिससे अगली संटी के लिए हथेली तैयार हो जाए! कभी साँय, कभी सटाक...आचार्य जी को पांच संटियाँ मारने के लिए करीब दस बार संटी फटकारनी पड़ती थी! झूठ नहीं बोलेंगे....हमने भी संटी का स्वाद चखा है! तब तो मज़ा नहीं आता था लेकिन अब याद करके बड़ा मज़ा आता है!

Thursday, May 15, 2008

ए छुटकी...


ए छुटकी...
पता है..जब तू आई थी अपने घर पर
बावला हो गया था तुझे छूने को
पर मैं भी बच्चा ही तो था
माँ ने धीरे से मेरा हाथ तुझसे छुल्वाया था
लेकिन मौका पाकर तुझे भर लेता था
मैं अपनी नन्ही गोद में
टुकुर टुकुर मुझे देखती तू
धीरे से हस पड़ती थी....

और तेरे स्कूल का पहला दिन
रोई ,सहमी सी तू
मेरे एक हाथ में तेरा बस्ता
और दूसरे हाथ में तेरी ऊँगली
एक बात बताऊ तुझे....
भले ही मैं तुझसे लड़ता था
लेकिन
तेरा बस्ता उठाना मुझे
बहुत अच्छा लगता था...

राखी बंध्वाता था जब भी
तुझे बहुत सताता था
तब कहीं जाकर पैसे देता था...
लेकिन
मन करता था काश
दुनिया की सारी दौलत
तुझे उपहार में दे पाता...

कैसे भूल जाऊ पगली कि
मेरी कितनी गलतियों को
छुपाया है तूने
जाने कितनी बार डांट पड़ने से
बचाया है तूने
अपनी सहेली से अगर न मिलवाती
तो कैसे होती वो आज तेरी भाभी...

एक बात और कहूं....
मुझे छेड़ना मत
मैंने कहा था तुझसे कि
नहीं रोऊंगा तेरी विदाई में
सब झूठ था छुटकी..
देख आंसू ख़तम ही नहीं होते मेरे
तीन दिन से हर रात बस रो ही रहा हूँ
न माने तो पूछ ले अपनी भाभी से...


भले ही कितना भी झगडा हूं तुझसे
पर याद रखना छुटकी की बच्ची
कि बहुत प्यार करता है तुझे
तेरा ये बड़ा भाई....
और चाहता है हरदम
बस तेरी खुशियाँ और भलाई...

Monday, May 12, 2008

शुक्रिया माँ....

शुक्रिया माँ
मुझे मुह अँधेरे जगाकर पढाने के लिए
हर परीक्षा में मेरा हौसला बढाने के लिए
मुझे बैंक में ड्राफ्ट बनवाना,
पोस्ट ऑफिस में खाता खुलवाना
सिखाने के लिए

अकेले बसों में सफर करना
दुनिया से अकेले लड़ना सिखाने के लिए
असहायों की मदद करना, दुष्टों से निपटना
और मित्रता निभाना सिखाने के लिए
तुरपाई करना, बटन लगाना, खाना बनाना
और कपडे प्रेस करना सिखाने के लिए

अपनी अच्छाइयां मुझमे डालने के लिए
मुझे इस दुनिया में लाने के लिए
ये खूबसूरत जहाँ दिखाने के लिए
बहुत बहुत शुक्रिया माँ....

Wednesday, May 7, 2008

ब्रेकिंग न्यूज़

अभी कुछ दिन पहले टी.वी. पर हर चैनल मे एक ब्रेकिंग न्यूज़ देखी...."प्रीति जिंटा थप्पड़ मामले पर बोलीं" हमें उत्सुकता हुई कि प्रीति जी ऐसा क्या बोलीं कि ब्रेकिंग न्यूज़ बन गयी! १५ मिनिट तक तो विज्ञापनों से बहलाते रहे....बीच बीच मे एक पढा लिखा सा रिपोर्टर आकर दिलासा दे जाता कि अभी कहीं जाइयेगा मत...ब्रेक के बाद खुलासा होगा इस न्यूज़ का...खैर फालतू ही थे सो जमे रहे टी.वी के सामने...अंततः एक लम्बे इंतज़ार के बाद वो घडी भी आ गयी जब प्रीति को बोलते हुए दिखाया गया....ज़रा आप भी ताज़ा कर लें अपनी स्मृति को कि क्या खुलासा हुआ ....प्रीति बोलीं.." मैं कोई कमेंट नहीं करना चाहती हूँ...जो भी फैसला आएगा वो सही ही होगा". अरे ..जब पहाड़ खुदवाया तो कम से कम एक आध चुहिया तो निकाल देते!

मन बुझ गया...इससे तो राजू श्रीवास्तव को ही देख लेते! लेकिन इस खबर ने हमारे अन्दर भारी उत्सुकता पैदा की कि आखिर ये ब्रेकिंग न्यूज़ कैसे बनती हैं, किन भाग्यशाली ख़बरों को इनमे स्थान मिलता है, रिपोर्टरों को क्या मेहनत करनी होती है इन्हें जुगाड़ने के लिए? तो साहब, जहाँ चाह,वहाँ राह! हमने अपने एक मुखबिर को पकडा और उससे कहा कि भाई हमारी उत्सुकता शांत करने का कोई उपाय बतलाओ....ये मुखबिर भी बड़े काम कि चीज़ होते हैं...जाने कहाँ से ऐसी ऐसी खबरें निकालकर लाते हैं कि सारी इंटेलिजेंस फेल है इनके सामने! उसने कुछ इस भाव से हमें देखा कि ...बड़े ऑफिसर बने फिरते हैं, हम खबरें न दें तो एक बदमाश नहीं पकड़ सकते" हमने भी कुछ इसी भाव से उसे उत्तर में देखा कि "भाई..तू सही कह रहा है"

अगले दिन ही वो आया और एक सी.डी. हमारे हाथ में धर दी ,बोला ..बड़ी मुश्किल से एक चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ की मीटिंग की सी.डी. मिली है..इससे आपके प्रश्नों का समाधान हो जायेगा!उसे उचित पुरस्कार देकर हमने विदा किया! जल्दी से सी.डी. लगायी...देखा और अब मन पूरी तरह शांत है! आपको भी मीटिंग का आँखों देखा हाल सुनाये देते हैं..कहीं कोई का मन हमारे जैसा विचलित होता हो तो मन शांत कर ले! चलिए सीधे मीटिंग रूम में चलते हैं-
मीटिंग रूम में ४-५ रिपोर्टर मौजूद हैं...जो दिन भर पसीना बहाकर ब्रेकिंग न्यूज़ इकट्ठी कर के लाये हैं...उनका हेड सामने कुर्सी पर विराजमान है ! उसे ही न्यूज़ चुनने का अति महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है! वह सबसे पूछता है कि कौन क्या खबर लाया है!
पहला रिपोर्टर- ऐसी न्यूज़ लाया हूँ कि आप खुश हो जायेंगे!
हैड- क्या खबर है?
पहला- आज सलमान खान ने लगातार तीन बार छींका! डॉक्टर की भी बाईट लेके आया हूँ ,वो बतायेगा कि तीन बार छींकना किस बीमारी का लक्षण है!
हैड- बहुत बढ़िया, इस पर कैटरीना का बयान मिल जाए तो और अच्छा! चलो और लोग बताओ....
दूसरा-सर...आज ऐश्वर्या राय विदेश से १५ दिन बाद लौटी और अभिषेक और अमिताभ उसे लेने एयरपोर्ट पहुंचे...
हैड- वैरी गुड! क्लोस अप शॉट्स लिए हैं न?
दूसरा- लिए सर लिए, उनके बॉडीगार्ड ने बहुत धकियाया , अभिषेक ने गाली भी बकी लेकिन मैं फिर भी फोटो लेकर आ गया!
हैड- शाबाश... मैं तुम्हारी तरक्की की सिफारिश करूंगा! चलो और लोग बताओ.
तीसरा- सर, मैंने बढ़ती महंगाई के कारण और निदान पर रिपोर्ट तैयार की है! विद्वान् अर्थशास्त्रियों के बयान भी लिए हैं..
हैड- क्या तुम भी..अपना और हमारा दोनों का टाइम खराब करते हो! विद्वानों की बात सुनने का टाइम किसके पास है! अगली बार अच्छी खबर लाना! चलो और लोग बताओ...
चौथा- सर..एक गाँव में तीन सींग वाली बकरी मिली...लोगों ने पूजा पाठ शुरू कर दिया है!
हैड- बहुत बढ़िया, खबर पर लगातार नज़र मनाये रखो! हाँ तो अब आखिरी में तुम और बचे हो..बताओ क्या किया? अरे हाँ याद आया...तुम्हे तो मैंने ट्यूब वैलों पर कैमरा लेकर खडा होने को कहा था न जिससे जैसे ही कोई बच्चा गिरे..सबसे पहले हमारा चैनल कवर करे!
पांचवा- सर, क्या बताऊँ? वहीं गया था , बोरिंग के मुंह पर किसी ने बड़ा पत्थर रख दिया था..वही हटा रहा था इतने में दुसरे चैनल का रिपोर्टर भी वहीं छुपा हुआ था..जाने कहाँ से आया और मुझे उसमे धक्का दे दिया! वो तो भला हो मेरे मोटापे का ,अन्दर नहीं घुस पाया! वहीं अटक गया! बड़ी मुश्किल से बचकर आया हूँ!
हैड- चलो, कोई बात नहीं! तो आज की मीटिंग ख़तम होती है! हमें तीन ब्रेकिंग न्यूज़ मिल गयी हैं! बाकी लोग और मेहनत करें!

देखिये, अब हमसे ये मत पूछियेगा कि सी.डी. किस चैनल की थी... वो नही बताएँगे! अरे भाई आगे और भी तो खबरें देनी हैं आप लोगों को!

Saturday, May 3, 2008




मोहब्बत में जब चोट खाते हैं लोग
बज्मों में ग़म गुनगुनाते हैं लोग

किस्मत हुई बेवफा गर, तो क्या
जुनूं से भी तो जीत जाते हैं लोग

मतलब परस्ती के इस दौर में
ज़हर दोस्तों को पिलाते हैं लोग

सरायों से किसको मोहब्बत हुई
आते हैं,रुकते हैं,जाते हैं लोग

खुदा भी कहाँ बच सका दोस्तों
मंदिर से जेवर चुराते हैं लोग

गैरों पे कब बस किसी का चला
अपनों का ही दिल दुखाते हैं लोग

हमारी तुम्हारी तो हस्ती ही क्या
माँ बाप को भूल जाते हैं लोग